जनसंख्या वृद्धि नियंत्रण के उपाय (Measures to check population growth) :-
कृत्रिम प्रक्रिया से संतानों की उत्पत्ति को नियंत्रित करना संतति नियंत्रण कहलाता है, संतति नियंत्रण से ही जनसंख्या वृद्धि में नियंत्रण संभव होता है। परिवार नियोजन केंद्र में कार्यरत चिकित्सक या अन्य कर्मचारी जनता को संतति नियंत्रण के विभिन्न उपाय, यौन-शिक्षा विषयों से संबंधित विभिन्न प्रकार की जानकारी देते हैं।
जनसंख्या वृद्धि नियंत्रण के उपाय निम्नांकित साधनों को अपनाकर किया जा सकता है —
हाॅर्मोनल विधियां :-
विभिन्न प्रकार के हार्मोनो जैसे एस्ट्रोजन – प्रोजेस्टेरोन के मिश्रण या केवल प्रोजेस्टेरोन से बनी गर्भनिरोधक गोलियां बाजार में माला-N, माला-D, सहेली, अप्सरा आदि नामों से मिलती है। यह गोलियां 21 दिनों तक प्रतिदिन स्त्रियों द्वारा ली जाती है, इन्हें मासिक चक्र के प्रथम 5 दिनों में मुख्यत: पहले दिन से ही शुरू की जाती है। गोलीयां समाप्त होने के 7 दिनों के अंदर जब पुनः मासिक चक्र शुरू होता है, इन्हें फिर से लिया जाता है एवं यह क्रम तब तक जारी रखा जाता है जब तक गर्भनिरोध की आवश्यकता है। सहेली नामक गोलियां हफ्ते में मात्र एक बार ली जाती है। ये गोलियां अंडोत्सर्ग तथा इंप्लांटेशन को रोकते है।
प्राकृतिक विधियां :-
बाह्य स्खलन विधि जनसंख्या वृद्धि नियंत्रण के उपाय है जिसमें पुरुष संभोग के समय वीर्य स्खलन से ठीक पहले स्त्री के योनि से अपना लिंग बाहर निकालकर वीर्यसेचन से बच सकता है।
- स्तनपान अनावर्त विधि में प्रसव के बाद जब तक स्त्री शिशु को भरपूर स्तनपान कराती है तब तक अंडोत्सर्ग और मासिक चक्र शुरू नहीं होता है। इसलिए माता शिशु को जब तक स्तनपान कराती है तब तक प्राय: गर्भधारण नहीं करती है। यह विधि प्रसव के बाद केवल 6 महीने तक ही प्रभावी होता है।
- मासिक चक्र प्रारंभ के 10वें दिन से 17वें दिन के बीच निषेचन होने की प्रबल संभावना रहती है क्योंकि इसी अवधि में अंडोत्सर्ग की क्रिया होती है तथा अंडाणु फेलोपियन नलिका तक पहुंचती है, इस अवधि में स्त्री-पुरुष संभोग से बचने पर स्त्री प्राय: गर्भधारण नहीं करती है।
यांत्रिक या अवरोधक विधियां :-
कुछ अवरोधक साधनों द्वारा अंडाणु और शुक्राणु को परस्पर मिलने से रोका जाता है। पुरुषों के लिए इस रोधक साधन को कंडोम कहते हैं, बाजार में यह निरोध के नाम से भी उपलब्ध है। कंडोम पतले रबड़ से बना होता है। यह संभोग के समय शिश्न (penis) पर एक आवरण का कार्य करता है जिससे वीर्य योनि में प्रवेश नहीं कर पाता है। इसके इस्तेमाल से एड्स से भी बचाव होता है।
- डायफ्राम, गर्भाशय ग्रीवा टोपी आदि अवरोधक मानव निर्मित रबड़ के बने होते हैं। संभोग के पूर्व गर्भाशय ग्रीवा को ढँककर शुक्राणुओं के प्रवेश को रोक दिया जाता है। अवरोधक साधनों के साथ शुक्राणुनाशक क्रीम या जेली का प्रायः इस्तेमाल किया जाता है, इससे गर्भनिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।
- आजकल एक विशेष प्रकार की विधि अंत: गर्भाशय युक्ति (Intrauterine device, IUD) का उपयोग होता है जैसे – लिम्पेस लूप, कॉपर-T, कॉपर-7 इत्यादि। गर्भधारण में देरी या जो स्त्री बच्चों के जन्म में अंतराल चाहती है उसके लिए IUD आदर्श गर्भनिरोधक युक्तियां है, इन युक्तियों को अनुभवी नर्सो द्वारा योनि मार्ग से गर्भाशय में लगाया जाता है।
सर्जिकल विधियां :-
ऐसे विधि में पुरुष नसबंदी (Vasectomy) किया जाता है। इसमे शुक्रवाहिका को काटकर धागे से बांध दिया जाता है। इससे शुक्राणुओं का प्रवाह स्त्री के योनि में नहीं हो पाता है।
- स्त्री में फेलोपियन नलिका को काटकर धागे से बांध दिया जाता है। इससे शुक्राणु अंडाणु को निषेचित नहीं कर पाता है। इसे स्त्री नसबंदी (Tubectomy) कहते हैं।
चिकित्सीय सगर्भता समापन [Medical Termination of Pregnancy (MTP)] :-
गर्भावस्था पूर्ण होने से पहले गर्भ के समापन को चिकित्सीय सगर्भता समापन करते हैं। इस विधि में भ्रूण को शैल्य क्रिया द्वारा योनि के रास्ते से बाहर निकाल दिया जाता है। शैल्य चिकित्सक यह कार्य करने के लिए पहले भ्रूण की जांच करके देखते हैं कि उसे आनुवंशिक बीमारी के लक्षण है या नहीं, ऐसी बीमारी के लक्षण होने पर भ्रूण के माता-पिता की इच्छाअनुसार 4 से 5 महीने के अंदर गर्भपात कर दिया जाता है।
- प्रारंभिक सगर्भता या गर्भावस्था के 3 महीने तक का गर्भपात सुरक्षित होता है। 6 महीने पूरा हो जाने पर गर्भपात कराना घातक होता है।
- सगर्भता समापन से साधारणत: मादा भ्रूण की हत्या किया जाता है जो गैरकानूनी है।
एमनियोसेंटेंसिस (Amniocentesis) :-
इस जांच के द्वारा गर्भ या भ्रूण का स्वास्थ्य, लिंग या अनुवांशिक संरचना निर्धारित होता है। इसमें माता के गर्भाशय में सुई द्वारा एमनियोटिक द्रव नमूने के लिए निकाला जाता है।
प्रायः इस जाँच का प्रयोग आनुवंशिक दोष में गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए किया जाता है