डीएनए प्रतिकृति (DNA Replication) के मत :-
डीएनए प्रतिकृति से संबंधित निम्नलिखित तीन प्रकार के मत दिए गए हैं।
1. विक्षेपक मत ( Dispersive theory ) :-
इस मतानुसार डीएनए का अणु कई स्थान पर टूट जाता है तथा टूटे हुए भाग स्वतंत्र रूप से DNA प्रतिकरण करते हैं। इसके उपरांत सभी स्ट्रैंड बेतरतीब रूप से जुट जाते हैं जिसके फलस्वरूप पुराने तथा नए स्ट्रैंड दोनों ही आंशिक रूप से उपस्थित रहते हैं।
2. संरक्षी मत ( Conservative theory ) :-
इस मत को मानने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार जनक डीएनए के दोनों पॉलिन्यूक्लियोटाइड सुरक्षित रहते हैं एवं DNA प्रतिकरण से नए डीएनए स्ट्रैंड बनते हैं।
3. अर्धसंरक्षी मत ( Semiconservative theory ) :-
इस मत को सबसे अधिक मान्यता प्राप्त है जो प्रयोगों पर आधारित है। इसमें डीएनए हेलिक्स के दोनों स्ट्रैंड द्विगुणन के पूर्व आंशिक रूप से अलग हो जाते हैं तब अलग हुए यह दोनों स्टैंड template का कार्य करते हैं तथा इन्हीं के सहारे DNA प्रतिकरण की प्रक्रिया संपन्न होती है, जिसके फलस्वरूप द्विगुणन के उपरांत दो स्ट्रैंड्स में एक पुराना होता है जो template का कार्य करता है तथा दूसरा नया होता है जिसके संश्लेषण के लिए सभी रासायनिक पदार्थ ( शर्करा, फास्फेट , नाइट्रोजनी बेस तथा H परमाणु ) Cytoplasm से प्राप्त किए जाते हैं।
इस मत को सिद्ध करने के लिए मैथ्यू स्टैनली मेसेल्सन तथा फ्रैंकलिन विलियन स्टाल के प्रयोग और टेलर के प्रयोग का वर्णन निम्नलिखित है।
मेसेल्सन स्टाल ने 1958 में E. coli बैक्टीरिया को रेडियोधर्मी नाइट्रोजन युक्त माध्यम में culture किया। इससे रेडियोधर्मी नाइट्रोजन बैक्टीरिया के डीएनए में पहुंच जाता है। मिश्रण को CsCl₂ की उपस्थिति में सेंट्रीफ्यूज करके भारी डीएनए को हल्का डीएनए से पृथक कर लिया गया। इस प्रकार डीएनए के दोनों भागों में रेडियोधर्मी नाइट्रोजन का समावेश कर दिया गया।
अब इस प्रकार संवर्धित भारी डीएनए के अणु को general नाइट्रोजन वाले माध्यम में replication के लिए रखा गया।
DNA ( redioactive nitrogen ) के दोनों स्ट्रैंड विकुंडलित होने के उपरांत template बन गए और उसमें ( N¹⁴ ) के नए strand बन गए। इस प्रकार पहली पीढ़ी में replication के बाद 100% संकर DNA ( पुराना स्ट्रैंड N¹⁵ का तथा नया N¹⁴ का ) अर्थात द्विगुणन semiconservative हुआ।
1957 मे टेलर ने अपना प्रयोग Vicia faba पर करके यह सिद्ध किया कि DNA प्रातिकरण अर्धसंरक्षी विधि द्वारा होता है। उन्होंने autoradiography तकनीक का इस्तेमाल कर नाइट्रोजनी बेस थाइमिन को लेबल किया, अर्थात उसे रेडियोधर्मी बनाया। थाइमिन को लेबल इसलिए किया कि RNA में थाइमिन नहीं होता है। अपितु उसके स्थान पर यूरेसिल होता है।
- टेलर ने DNA प्रतिकरण के लिए डीएनए को ऐसे माध्यम में रखा जिसमें H³ उपस्थित था तथा जिसके फलस्वरूप tritiated thymidine उत्पन्न हुआ जिससे डीएनए के दोनों स्टैंड redioactive हो गए। अब इस डीएनए को साधारण माध्यम में स्थानांतरित कर दिया। मिसेल्सन के प्रयोग जैसा यहां भी प्रतिकरण की पहली, दूसरी तथा तीसरी पीढ़ी में संकर DNA क्रमश: 100%, 50% तथा 25% प्राप्त हुआ। हर पीढ़ी के संकर डीएनए में एक स्ट्रैंड लेबल किया हुआ था तथा दूसरा साधारण जिससे DNA प्रतिकरण की अर्धसंरक्षी क्रियाविधि सिद्ध होती है।
वाटसन और क्रिक ने भी डीएनए द्विकुंडलिनी संरचना का वर्णन करते समय Semiconservative DNA प्रातिकरण का वर्णन किया। इनके अनुसार DNA प्रतिकरण के समय दोनों एस्ट्रैंड एक दूसरे से अलग हो जाते हैं एवं दोनों पुराना स्टैंड template का कार्य कर दो समकर डीएनए के अणु बनाते हैं जिसमें एक स्टैंड पुराना तथा एक स्टैंड नया रहता है। मेसेल्सन तथा स्टाल की परिकल्पना के अनुसार DNA प्रतिकरण के समय डीएनए के दोनों स्टैंड एक दूसरे से पूर्णरूपेण अलग नहीं होते हैं।
- एंजाइम की उपस्थिति में दोनों स्ट्रेंड्स एक सिरे या अंतिम छोर से विकुंडलित हो जाते हैं फिर अपनी ओर न्यूक्लियोटाइड्स को आकर्षित कर जुड़ते हैं एवं उसके बाद कुंडलित हो जाते हैं। यह एक सतत प्रक्रिया है जो आवश्यकता अनुसार चलती है
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डीएनए प्रतिकृति की विधियां (Methods of DNA Replication) :-

डीएनए प्रतिकृति की क्रिया निम्नलिखित चरणों में संपन्न होती है।
1. प्रारंभन ( Initiation ) :-
DNA प्रतिकरण की क्रिया किसी एक स्थान या अनेक स्थानों से शुरू हो सकती है, जैसे बैक्टीरिया एंव वायरस में अनेक स्थानों से शुरू हो सकती है। DNA प्रतिकरण किसी खास बिंदु से शुरू होकर एक या दोनों दिशाओं में हो सकता है।




2. कुंडली का खुलना ( Unwinding of helix ) :-
DNA प्रातिकरण के पहले हाइड्रोजन बंध टूट जाते हैं एवं डीएनए के दोनों स्ट्रैंड एक दूसरे से अलग हो जाते हैं। यह क्रिया helicase एवं अन्य एंजाइमों की सहायता से होती है। सभी एंजाइमों को सम्मिलित रूप से टोपोआइसोमेरेस कहते हैं।
DNA के विकुंडलन से Y आकार की शाखा ( fork ) बन जाती है जिसे प्रतिकरण शाखा ( replication fork ) कहते हैं।




3. प्राइमर स्ट्रैंड्स का निर्माण ( Formation of primer strands ) :-
इस प्रकार डीएनए का अलग हुआ दोनों स्टैंड template या फार्मा का कार्य करता है। इसके सामने लंबाई में बढ़ने वाला नया स्टैंड या प्राइमर बनता है। प्राइमर RNA का छोटा-छोटा टुकड़ा होता है जो RNA polymerase और अन्य एंजाइमों की सहायता से बनता है।
4. नए स्टैंड की लंबाई में वृद्धि ( Elongation of new strand ) :-
पृथक डीएनए टेंप्लेट के न्यूक्लियोटाइड्स अपने पूरक न्यूक्लियोटाइड्स को आकर्षित कर नए strands बनाते हैं। इस क्रिया में RNA प्राइमर प्रथम सिढी का कार्य करता है। द्विगुणन सदैव 5′ से 3′ दिशा में होता है, परंतु दोनों templates strands के प्रतिसमानांतर ( antiparallel ) होने के कारण एक स्टैंड के 5′ से 3′ दिशा होती है तो दूसरे स्ट्रैंड की 3′ से 5′ दिशा होती है। नए न्यूक्लियोटाइड्स के निर्माण में डीएनए पॉलीमेरेज ( DNA polymerase ) एंजाइम भाग लेते हैं।
संतत एवं अर्धसंतत प्रतिकरण ( Continuous and semicontinuous replication ) :-
DNA प्रतिकरण चुँकि दो दिशाओं में एक साथ होता है, इसलिए एक ही एंजाइम डीएनए पॉलीमेरेज lll से यह क्रिया संभव नहीं है। इस कठिनाई को निम्नलिखित सुझाव से दूर किया गया है।
डीएनए के उस स्टैंड में जहां से संश्लेषण आरंभ होता है , अर्थात अग्रज स्टैंड ( leading strand ) से द्विगुणन 5′ →3′ दिशा में संतत होता है, पर दूसरे स्ट्रैंड या lagging स्टैंड में संश्लेषण छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में असंतत होता है। ऐसे fragments को ओकाजाकी फ्रेगमेंट्स कहते हैं।
- प्रत्येक टुकड़े में 1000 से 2000 नाइट्रोजनी बेस पेयर्स होते हैं इन टुकड़ों को जोड़ने का काम डीएनए लाइगेज( DNA ligase ) एंजाइम द्वारा होता हैं।
- अग्रज स्ट्रैंड डीएनए पॉलीमेरेज lll एंजाइम तथा lagging स्टैंड DNA polymerase l एंजाइम की क्रियाशीलता से बनता है।



