संयुक्त सूक्ष्मदर्शी (Compound Microscope) :-
सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता बढ़ाने के लिए जब उसमें दो लेंस प्रयोग किए जाते हैं तब ऐसे यंत्र को संयुक्त सूक्ष्मदर्शी करते हैं। एक लेंस से पहले वस्तु का आवर्धित वास्तविक प्रतिबिंब बनता है जो दूसरे लेंस के लिए वस्तु का कार्य करता है, परिणामी प्रतिबिंब अपेक्षाकृत अधिक आवर्धित बनता है।
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की बनावट (construction of compound microscope) :-
इसमें दो समाक्षीय (coaxial) उत्तल लेंस रहते हैं।वस्तु की ओर वाले लेंस को अभिदृश्यक (objective) या वस्तु लेंस तथा नेत्र के समीप वाले लेंस को नेत्रिका (eyepiece) कहा जाता है। दोनो लेंस धातु की दो समाक्षीय नलियों के सिरों पर लगे रहते हैं जिसके बीच की दूरी, नेत्रिका की नली अभिदृश्यक की नली के अंदर एक दंड चक्र द्वारा खिसककर समंजित की जाती है।
अभिदृश्यक छोटे व्यास का और छोटी फोकस दूरी, अर्थात उच्च आवर्धन क्षमता का उत्तल लेंस होता है जबकि नेत्रिक बड़ी फोकस दूरी तथा बड़े व्यास का उत्तल लेंस होता है।
मान लिया की एक छोटी वस्तु AB का आवर्धित प्रतिबिंब देखना है, तो उसे अभिदृश्यक O के फोकस Fₒ के मात्र बाहर रखा जाता है। अभिदृश्यक द्वारा वस्तु AB का वास्तविक, उलटा तथा आवर्धित प्रतिबिंब A’B‘ पर बनता है। यह आवर्धित प्रतिबिंब नेत्रिका के लिए वस्तु का कार्य करता है। अब नेत्रिका को खिसकाकर ऐसे स्थान पर रखा जाता है कि A’B‘ इसकी फोकस दूरी (EFₑ) के अंदर आ जाए और इसका आभासी प्रतिबिंब A”B” लेंस से स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी D पर बने।
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता (Magnifying power of compound microscope):-
इसमें प्रतिबिंब की आवर्धन क्रिया दो बार संपादित होती है- पहली बार अभिदृश्यक द्वारा और दूसरी बार नेत्रिका द्वारा जो एक सरल सूक्ष्मदर्शी जैसा कार्य करता है। अतः सरल सूक्ष्मदर्शी की अपेक्षा है इस यंत्र से बहुत अधिक आवर्धन प्राप्त होता है।
सामान्यतः सूक्ष्मदर्शी द्वारा अंतिम प्रतिबिंब A’‘B” नेत्र के निकट बिंदु, अर्थात स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी D पर बनता है। अतः यंत्र की आवर्धन क्षमता
M = vₒ / uₒ (1 + D / fₑ)
जब अंतिम प्रतिबिंब अनंत पर बनता हो तब आवर्धन क्षमता
M = vₒ / uₒ x D / fₑ
यदि वस्तु अभिदृश्य की फोकस दूरी के निकट हो तथा नेत्रिका की फोकस दूरी (fₒ), vₒ की अपेक्षा बहुत छोटी हो, अर्थात fₑ << vₒ तो सूक्ष्मदर्शी की नली की लंबाई OE = L को लगभग vₒ के बराबर माना जा सकता है और तब यंत्र की आवर्धन
M = L / fₒ (1 + D / fₑ)
उपर्युक्त समीकरण से स्पष्ट है कि यंत्र की नली की लंबाई बढ़ने पर उसकी आवर्धन क्षमता सीधे रूप से बढ़ती है।