संक्रामक रोग :-
वैसे रोग जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलते हैं, उन्हें संक्रामक रोग कहते हैं| ऐसे रोग सूक्ष्मजीवों से होते हैं| सूक्ष्मजीव रोगी के शरीर में वृद्धि करते हैं और शरीर को रोग का आश्रय बना देते हैं|
संक्रामक रोग के लक्षण :-
शरीर के ताप में वृद्धि, हृदय गति में वृद्धि, श्वसन दर में वृद्धि, जीभ का सुखना, भूख कम लगना, पेशाब का गाढ़ा और पीला हो जाना आदि संक्रमण का मुख्य लक्षण हैं|
संक्रामक रोग के कारण :-
संक्रामक रोग का प्रसार :-
संक्रामक रोग का प्रसार निम्नलिखित तरीकों से होता है-
1. भोजन और जल द्वारा :-
इस माध्यम से फैलने वाले रोग हैजा, टाइफाइड अमीबी पेचिश, अतिसार इत्यादि है| इन रोगों का संक्रमण दूषित जल या दूषित भोजन के सेवन से होता है| रोगजनक जीव मनुष्य के पाचन तंत्र को प्रभावित करते हैं| फीताकृमि, गोलकृमि भी पाचन तंत्र को प्रभावित कर रोग उत्पन्न करते हैं| यह रोगाणु मल के साथ रोगी के शरीर से बाहर निकलते रहते हैं, ऐसे मनुष्य को रोगवाहक कहते हैं|
- रोगवाहक के मल पर जब मक्खियां बैठती है तब मल में मौजूद रोगाणु उनके शरीर से चिपक जाते हैं तथा ये मक्खियां बाद में खुले भोजन पर बैठकर भोजन को दूषित कर देते हैं| जब एक सामान्य स्वास्थ्य व्यक्ति इस दूषित जल या भोजन का सेवन करता है तब उस स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में परजीवी पहुंचकर रोग संक्रमण का प्रसार करते हैं|
2. वायु द्वारा :-
वायु में मौजूद जीवाणु द्वारा भी संक्रमण होता है जो नासिका छिद्र के द्वारा श्वसन मार्ग में प्रवेश कर जाते हैं| ऐसे जीवाणु द्वारा क्षयरोग, कुकुरखांसी इत्यादि उत्पन्न होते हैं|
3. संपर्क द्वारा :-
गोनोरिया, ट्रेकोमा, स्केबीज इत्यादि रोग संपर्क द्वारा भी फैलते हैं|
4. चोट द्वारा :-
त्वचा जब किसी कारणवश घायल हो जाती है तब उस घाव के जरिए रोगाणु शरीर के अंदर प्रवेश कर जाते हैं तथा रोग उत्पन्न कर देते हैं| जैसे रेबीज विषाणु द्वारा, टेटनस और अल्सर बैक्टीरिया द्वारा होते हैं|
5. कीटों द्वारा :-
मलेरिया, फाइलेरिया, कालाजार, टाइफाइड इत्यादि रोगों के परजीवी कीटों की लार ग्रंथियों में स्थित रहते हैं, जब यह कीट स्वस्थ मनुष्य को काटते हैं तब उस संस्थान से निकलकर ये परजीवी मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर रोग उत्पन्न कर देते हैं|
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