वाहितमलजल उपचार में सूक्ष्मजीव (microbes in sewage treatment) :-
प्रायः घरों, शहरों, उद्योगों आदि जगहों से वाहितमलजल काफी मात्रा में प्रतिदिन निकलते हैं जो निकट के जलाशयों में बहा दिए जाते हैं। इस वाहितमलजल में मवेशी, मनुष्य एवं अन्य जीवो के मल-मूत्र सम्मिलित रहते हैं। वाहितमलजल उपचार के लिए सूक्ष्मजीव जैसे जीवाणु वाहितमलजल में मौजूद कार्बनिक प्रदूषक को अपने में ग्रहण कर इसे शुद्ध करने का कार्य करते हैं।
- वाहितमलजल में कार्बनिक पदार्थ अधिक मात्रा में रहते हैं। अतः इसे जीवाणु एवं अन्य सूक्ष्म जीवों की संख्या में वृद्धि होती है। परिणामस्वरूप जलाशय के जल में घुली ऑक्सीजन की संद्रता कम हो जाती है और इसके बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) में वृद्धि होती है। इस प्रकार का जल जलीय जंतु के साथ-साथ मनुष्य के लिए भी हानिकारक होता है। इसके सेवन से अनेक प्रकार की बीमारियां उत्पन्न होती है।
- यह आवश्यक है कि वाहितमलजल को जलाशयों में बहाने के पहले इसका समुचित उपचार किया जाना चाहिए। घरेलू एवं औद्योगिक दोनों प्रकार के वाहितमलजल उपचार की बुनियादी पद्धति एक समान होती है। हालांकि इसके उपचार को विभिन्न चरणों में बांटा जाता है, लेकिन इसमें मुख्यतः परपोषित सूक्ष्मजीव की भूमिका रहती है जो वाहितमलजल में प्राकृतिक रूप में पाए जाते हैं।
वाहितमलजल उपचार के विभिन्न चरण :-
1. प्राथमिक उपचार (primary treatment) :-
वाहितमलजल उपचार के इस चरण में मूलतः मलजल में मौजूद छोटे बड़े लंबित कणों को अलग किया जाता है। इसके लिए विभिन्न भौतिक क्रियाओं , जैसे अवसादन, प्लवन, छानन एवं निस्यंदन का सहारा लिया जाता है।
- सर्वप्रथम तैरते हुए कणों एवं अन्य गंदगियों को छानकर हटा लिया जाता है। इसके बाद अवसादन द्वारा बालू के कणों, छोटे-छोटे रोड़े आदि को अलग किया जाता है। वाहितमलजल में बचे अन्य भारी गंदगियां जो ठोस कणों के रूप में रहती है धीरे-धीरे नीचे बैठ जाती है जिन्हे प्राथमिक अवमल (primary sludge) कहते हैै। ऊपर अवस्थित वाहितमलजल जो अब कुुुछ स्वच्छ हो जाता है को प्राथमिक निः सादन टंकी (primary settling tank) से द्वितीयक उपचार के लिए दूसरे टंकी में ले जाया जाता है।
2. द्वितीय उपचार या जैविक उपचार (secondary treatment or biological treatment) :-
वाहितमलजल उपचार के इस चरण में सूक्ष्मजीवों का उपयोग कर कार्बनिक प्रदूषको का अपघटन करवाया जाता है। इसके लिए वायवीय सूक्ष्मजीवों को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए ऑक्सीकरण ताल(oxidation pond) या यांत्रिक वातन टंकियों (mechanical aeration tanks) का प्रयोग किया जाता है।
- यांत्रिक वातन टंकियों में यांत्रिक रूप में वायवीय जीवाणु के लिए हवा प्रवाहित किया जाता है। इसके लिए पंप का प्रयोग किया जाता है जिससे इन जीवों को लगातार ऑक्सीजन मिलता रहता है। इससे वायवीय सूक्ष्मजीव लगातार एवं प्रबल वृद्धि कर जीवन झुंड के रूप में फ्लॉक बनाते हैं। फ्लॉक में जीवाणु की कॉलोनी के साथ-साथ कवक के तंतु मिले रहते हैं एवं एक जालीनुमा संरचना बन जाती है। अपनी वृद्धि के दौरान ये सूक्ष्मजीव वाहितमलजल में मौजूद कार्बनिक पदार्थों का खपत करता है। इस दौरान बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) अधिक रहता है। BOD जल में उपस्थित कार्बनिक प्रदूषको की सांद्रता को बताता है।
- किसी भी जल में अगर BOD की सांद्रता अधिक हो तो इसका अभिप्राय यह है कि वह जल कार्बनिक प्रदूषको से संपन्न है। इस प्रकार BOD ऑक्सीजन की उस मात्रा को इंगित करता है जो जीवाणु द्वारा एक लीटर जल में मौजूद कार्बनिक पदार्थों को ऑक्सीकृत करता है। ज्यों-ज्यों जीवाणु जल में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों की खपत करता जाता है त्यों-त्यों जल में BOD की सांद्रता घटती जाती है। इस प्रकार वाहितमलजल उपचार तब तक करना पड़ता है जब तक की BOD की सांद्रता घटन न जाए। BOD की क्षमता को जल में मौजूद घुलित ऑक्सीजन की सांद्रता में 5 दिनों में होने वाले अंतर से पता किया जाता है। इस दौरान जल को 20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर BOD इंक्यूबेटर के अंदर रखा जाता है।
- वाहितमलजल के BOD की सांद्रता में समुचित कमी हो जाने के बहि: स्राव को यहां से निकालकर निः सादन टैंक में भेजा जाता है। यहां जीवाणु के फ्लॉक्स धीरे-धीरे नीचे बैठ जाते हैं। इस अवसाद को सक्रियित अवमल करते हैं।
- सक्रियित अवमल के बचे हुए मुख्य भाग को पंप के माध्यम से बड़े टंकी में लाया जाता है। यहां इसे अवायवीय अवमल संपाचित्र कहते हैं। इस टंकी मेंं वैसेे जीवाणुओं का उपयोग किया जाताा हैै जो ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में वृद्धि करते हैं।
- द्वितीय उपचार के बाद बहि: स्राव को सामान्यतः प्राकृतिक जलाशयों में बहा दिया जाता है, क्योंकि इसमें अब तक सभी कार्बनिक पदार्थों का नाश हो चुका होता है। इस प्रकार सूक्ष्मजीवी प्रतिदिन करोड़ों गैलन वाहितमलजल उपचार में अहम भूमिका निभाते हैं।