मरुक्रमक (Xerosere) :-
शुष्क स्थानों में जहां जल की काफी कमी होती है, वहां होने वाले अनुक्रम को मरुक्रमक कहते हैं। मरुक्रमक की विभिन्न अवस्थाएं निम्नांकित है –
क्रस्टोज लाइकेन अवस्था (Crustose lichen stage) :-
वर्षा या भरी ओस के तुरंत बाद लाइकेन के प्रजनन संबंधी अंग हवा द्वारा उड़कर नग्न स्थानों (चट्टानों) पर अपनी जगह बनाते हैं। धीरे-धीरे यह लाइकेन अपना उपनिवेश स्थापित कर लेते हैं। इस प्रकार की अवस्था को क्रस्टोज लाइकेन कहते हैं। क्रस्टोज लाइकेन में राइजोकार्पन, रिवोडीना, ग्राफिस आदि प्रमुख है।
2. फोलियोज लाइकेन अवस्था (Foliose lichen stage) :-
वास स्थान में धीरे-धीरे परिवर्तन के कारण क्रस्टोज लाइकेन द्वारा आंशिक रूप से स्तर बना लेते हैं, जहां बड़ी एवं चपटी पत्ती के समान थैलसवाले फोलियोज लाइक प्रकट हो जाते हैं। इस समुदाय की जातियों में परमेलिया, डर्मेटोकार्पन, आदि प्रमुख है।
3. मॉस अवस्था (Moss stage) :-
फोलियोज लाइकेन द्वारा मिट्टी की पतली परत बन जाने से कड़े मॉस जैसे – पॉलीट्राइकम, ग्रिमिया आदि वहां उग जाते हैं जिसे मॉस अवस्था कहते हैं।
4. शाकीय अवस्था (Herbaceous stage) :-
मॉस के उपनिवेश के कारण चट्टान विघटन की गति में वृद्धि, ह्यूमस तथा पोषकों की मात्रा में वृद्धि से मिट्टी की मोटी परत जमा हो जाती है। अनुकूल परिस्थिति मिलने से वहां एक वर्षीय घास एवं अन्य शाकीय पौधे जैसे – पोआ, इल्यूसिन आदि उग जाते हैं। जिसे शाकीय अवस्था कहते हैं।
5. झाड़ी अवस्था (Shrub stage ) :-
एकवर्षीय घास धीरे-धीरे बहुवर्षीय घासों के द्वारा विस्थापित हो जाता है। शाकीय अवस्था के बाद तैयार की गई भूमि पर मरुद्विद (Xerophytic ) झाड़ियां जैसे – जिजाइफस (Zizyphus), कैपेरिस (Caparis), रस (Rhus) आदि प्रकट हो जाते है।
6. चरम अवस्थावाली वन (Climax forest) :-
मरुद्विद् (xerophytic) वृक्षों के आगमन से झाड़ीदार पौधे धीरे-धीरे विलुप्त हो जाते हैं। वातावरण ज्यादा नम एवं छायादार हो जाता है। वहां चरम अवस्था के समुदाय जैसे – पर्णपाती वन, शंकुधारी वन आदि प्रकट हो जाते हैं।