मधुमक्खी पालन (Apiculture in hindi) :-
आर्थिक लाभ के लिए मधुमक्खियों का पालन-पोषण तथा प्रबंधन मधुमक्खी पालन या एपीकल्चर कहलाता है। मधुमक्खी पालन प्राचीन समय से चला आ रहा एक कुटीर उद्योग है जिससे हमें शहद तथा मधुमोम की प्राप्ति होती है।
मधुमक्खी पालन को मौनपालन भी कहते हैं।
- मधुमक्खी पालन में मधुमक्खी के डिब्बे को खेतों के बीच में रख दिया जाए तो पौधों में कीट परागण होने से फसल अच्छी होगी तथा मधु या शहद भी अधिक मात्रा में मिल सकेगा। मधुमक्खीयां न केवल शहद प्रदान करती है, बल्कि परागण में मुख्य भूमिका निभाती है। हमारी प्रमुख फसलें जैसे सरसों, सूर्यमुखी, सेब, नाशपाती आदि में परागण मधुमक्खियों द्वारा ही होता है।
- व्यवसायिक स्तर पर मधुमक्खी पालन के लिए कृत्रिम मधुमक्खी पेटीका का उपयोग किया जाता है इन कृत्रिम में पेटिकाओं को बगीचों, खेतों या अन्य खुले स्थानों पर रखा जाता है। कृत्रिम मधुमक्खी पेटियों से मधु निकालते समय एक विशेष प्रकार की पोशाक की आवश्यकता होती है।
- लकड़ी के बने मधुमक्खी पेटीकाओं में दो कक्ष होते हैं। ऊपर वाले को संग्राहक कक्ष तथा नीचे वाले को रानी कक्ष कहते हैं, इन दोनों कक्षों के बीच में लोहे का बना एक जाल होता है, जिससे होकर केवल कार्यकर्ता मधुमक्खियां हीं संग्राहक कक्ष में प्रवेश कर सकते हैं। यह कार्यकर्ता संग्राहक कक्ष में प्रवेश करते हैं तथा उसके बेलनाकार बर्तन में मधु स्राव करते हैं। संग्रह होने के बाद बक्से के सबसे ऊपरी भाग को खोलकर उसमे भरे मधु को बाहर निकाल लिया जाता है।
मधुमक्खी के प्रकार (Types of honey bee) :-
व्यापारिक दृष्टिकोण से मधुमक्खियों की निम्नांकित 4 प्रजातियां होती है –
- ऐपिस इंडिका (Apis indica) :- यह एक सामान्य भारतीय मधुमक्खी है। यह Dorsata मधुमक्खियों की तुलना में शहद का उत्पादन कम करती है किंतु कोमल स्वभाव के होने के कारण मधुमक्खी पालन में इनका चयन किया जाता है।
- ऐपिस डॉरसाटा (Apis dorsata) :- यह भीमकाय मधुमक्खी कहलाती है। यह पहाड़ी क्षेत्र में चट्टानों पर बहुत बड़ेे मधुमक्खी के छाते का निर्माण करती है। ऐसे मधुमक्खियां मधु का निर्माण अधिक करती है किंतु प्रकृति में यह अपना अधिकार अधिक जमाती है तथा क्रूर प्रवृत्ति की होती हैै, इसलिए पालन-पषण इसका संभव नहीं हो पाताहै।
- ऐपिस फ्लोरिया (Apis florea) :- यह आकार में सबसे छोटी होती है। इसे सूक्ष्म मधुमक्खी भी कहते हैं। ऐसे मधुमक्खियों से आर्थिक लाभ नहीं होता
- ऐपिस मेलीफेरा (Apis mellifera) :- यह यूरोपियन मधुमक्खी है। भारतीय वातावरण मेंं इसका पालन-पोषण संभव नहीं होता है तथा व्यवसायिक दृष्टिकोण से शहद उत्पादन के लिए इस मधुमक्खी का उपयोग अधिक होता है।
मधुमक्खी कॉलोनी (Bee colony) :-
मधुमक्खी कॉलोनी में इनके तीन प्रकार की जातियां होती है –
(1). रानी (queen) :- यह द्विगुणित मादा मधुमक्खी होती है। यह सबसेे बड़ी तथा गहरे सुनहरे-भूरे रंग की होती है। इसका मुंह मकरंद को संग्रह करने के लिए अनुकूलित नही होती है, इसकेे पैर में पोलेन बास्केेट का अभाव होता है। रानी मधुमक्खी केवल अंडे देती है इसके अतिरिक्त अन्य कोई कार्य नहीं करती है।
रानी मधुमक्खी अपने जीवन में केवल एक ही बार समागम करती है। जिससे शुक्रासय में शुक्राणु संचित हो जाते हैं। समागम के बाद लगभग 1000 से 1500 अंडे प्रतिदिन देती है। इनमें अधिकांश अंडे निषेचित होती है जबकि कुछ अनिषेचित ही रह जाती है।
(2). श्रमिक या कार्यकर्ता (Workers) :– श्रमिक मधुमक्खियांं मादा बांझ तथा द्विगुणित होती है। प्रत्येक छाता में लगभग 1000 इसकी संख्या होती है।
ये हल्के पीले रंग की सबसे छोटी मधुमक्खियां होती है। इनके पैर में पोलेन बास्केट पाई जाती है जो परागकण को ढोती है तथा इनके मुंह मकरंद को संग्रह करने के लिए अनुकूलित होती है।
इनके शरीर के उदर भाग में मोम स्राव करने के लिए चार ग्रंथियां पाई जाती है।
- पिछले भाग में वाल्व पाई जाती हैं जो किसी को चुभाने के पश्चात पुनः निकालने पर यह टूट जाती है जिसके कारण श्रमिक मधुमक्खी की मृत्यु हो जाती है।
- दुश्मनों से मधुमक्खी के छत्ते की सुरक्षा प्रदान करना, भोजन की खोज करना, मकरंद तथा परागकण को संग्रह करना, बच्चे को देखभाल करना आदि श्रमिक मधुमक्खियों की जिम्मेवारी होती है।
(3). ड्रोन्स (Drones) :-
यह अगुणित नर निषेचित मधुमक्खी है। प्रत्येक छाता में इनका संख्या 200 से 300 होता है। इन मधुमक्खियों का रंग काला होता है तथा ये रानी मधुमक्खी से छोटा जबकि श्रमिक से बड़ा होता है।
इन मधुमक्खियों में वाल्व, पोलेन बास्केट तथा मोम ग्रंथि का अभाव होता है।
- ये रानी मधुमक्खी के साथ समागम के अतिरिक्त अन्य कोई कार्य नहीं करते हैं। एक बार समागम के पश्चात ड्रोन की मृत्यु हो जाती है क्योंकि इनके शुक्रासय रानी मधुमक्खी के अंदर टूट जाती है।
मधुमक्खियों के रोग (Diseases of honey bees) :-
नोसेमा (Nosema) :-
यह नोसेमा नामक प्रोटोजोआ के संक्रमण के कारण होता है।
फ्लैचरी (Flacherie) :-
मधुमक्खियों में होने वाले यह डायरिया तथा पेचिश रोग है। निर्जलीकरण के कारण इनकी मृत्यु हो जाती है।
मधु या शहद के गुण (properties of honey) :-
मधुमक्खी पालन से मधु की प्राप्ति होती है। मधुमक्खी के छत्ते से ताजा प्राप्त मधु थोड़ा अम्लीय होता है किंतु जब इन्हें लंबे समय के लिए स्टोर किया जाता है तब यह थोड़ा क्षारीय हो जाता हैं।
- शहद में मुख्यताः डेक्सट्रोज शर्करा, फॉर्मिक अम्ल तथा विभिन्न प्रकार के एंजाइम्स पाए जाते हैं।
- शहद नवजात शिशुओं के भोजन के लिए अच्छा स्रोत माना जाता है क्योंकि इसमें पोषक पदार्थ अधिक पाया जाता है।
- शहद रोगाणुरोधक प्रकृति के होते हैं, इसलिए इसका उपयोग ठंढ तथा खांसी में भी होता है।