मत्स्यकी (Fisheries) एक प्रकार का उद्योग है जो पशुपालन के अंर्तगत आता है, इसका सीधा संबंध मत्स्य पालन, उनका प्रजनन तथा उनकी बिक्री से है। इस उद्योग में अन्य जलीय जीवों को भी सम्मिलित किया गया है। मत्स्य पालन को मछली पालन भी कहते है।
मत्स्य पालन :
विभिन्न संसाधनों का उपयोग कर जलीय पौधे तथा जंतु (जैसे- मछलियां, झींगा, लॉब्सटर, केकरा, सीप इत्यादि) के उत्पादन को जलीय संवर्धन (Aquaculture) कहते हैं तथा केवल मछलियों के उत्पादन एवं प्रबंधन को मत्स्य पालन कहते हैं। मत्स्य पालन को पिसीकल्चर या फिश फार्मिंग भी कहते हैं।
- मछलियां प्रोटीन के मुख्य स्रोत होते हैं। मछलियों के यकृत से प्राप्त तेल (शार्क या कॉड लिवर ऑयल) का औषधिक महत्व है।
- कुल मछली उत्पादन में भारत का विश्व में सातवां स्थान है हमारे देश को मछली उत्पादों के निर्यात से लगभग 4000 करोड़ रुपए की वार्षिक आय होती है।
- मछलियां अलवणीय जल या मृदु जल तथा लवणीय जल या कठोर जल दोनों प्रकार के जल में पाई जाती है। अलवणीय या मीठे जल में पाई जाने वाली मछलियों में रोहू, कतला, सिंगी, टेंगरा, मांगुर, गरई आदि प्रमुख है।
- हमारे देश में लगभग 75000 किलोमीटर का समुद्रीतट समुद्री मछली संसाधन क्षेत्र है। कृषि में हरित क्रांति की सफलता के बाद नीली क्रांति जो मत्स्य उद्योग को बढ़ावा देकर किया जा रहा हैै।
- मृदुजलीय मछली उत्पादन में वृद्धि के लिए मिश्रित मछली संवर्धन (Composite fish farming) की विधि अपनाई जाती है। मिश्रित मछली संवर्धन विधि में कई प्रजातियों की मछलियों का संवर्धन एक तालाब में एक ही समय किया जाता है।
- मत्स्य संवर्धन तकनीक द्वारा उन्नत किस्म की मछलियों का उत्पादन किया जाता है। नर तथा मादा मछलियों से क्रमशः शुक्राणु तथा अंडाणु प्राप्त कर उन्हें मिश्रित कराया जाता है। निषेचित अंडों को संवर्धन तालाब में रखा जाता है। अंडों से उत्पन्न बच्चे कुछ समय में बढ़कर अंगुलिकाएं बन जाते है।
नोट :- विश्व की जनसंख्या में निरंतर वृद्धि के कारण खाद्य उत्पादन मनुष्य की पहली प्राथमिकता बन गया है। खाद्य उत्पादन की वृद्धि में पशुपालन तथा पादप प्रजनन पर लागू होने वाले जैविक सिद्धांत हमारे प्रयासों को सफल बनाने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। पशुपालन में भ्रूण स्थानांतरण की नई तकनीक से पशु नस्लों को सुधारने तथा अधिक उपयोगी बनाने में सफलता मिली है।