भ्रूण संवर्धन (Embryo culture)
विकसित हो रहे बीजों से भ्रूण को निकाल कर उसे पोषण माध्यम पर उगाने की विधि को भ्रूण संवर्धन कहते है।
भ्रूण संवर्धन का सबसे पहला प्रयास हेनिग ने 1904 में किया था। नुडसन ने 1922 में आर्किड के भ्रूण को पोषक माध्यम पर संवर्धित करने में सफलता पाई थी।
डेइट्रीच ने 1924 में प्रयोग द्वारा यह पता लगाया कि परिपक्व भ्रूण को अधिक पोषक माध्यम पर संवर्धित किया जाए तो वह सामान्य रूप से विभाजित होकर नए पौधे को जन्म देते हैं, परंतु अपरिपक्व भ्रूण विकास के बीच की अवस्थाओं को लांघकर सीधे पौधे में रूपांतरित हो जाते हैं।
भ्रूण संवर्धन की विधियां (Embryo culture method)
- अंडाशय से बीजांड (ovule) को निकाल कर उसे विसंक्रमित पोषक माध्यम में रखते हैं।
- तेज ब्लेड से अंडप के एक सिरे को काटकर भ्रूण को बाहर निकाला जाता है और उसे अर्धठोस माध्यम पर समर्पित कर दिया जाता है।
- माध्यम में प्रचुर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, एमिनो अम्ल तथा विटामिन, खनिज लवण, प्राकृतिक पादप एक्सट्रेक्ट (नारियल का दूध, केले और खजूर का एक्सट्रैक्ट, टमाटर का जूस), तथा वृद्धि हार्मोन का होना भ्रूण के विकास के लिए आवश्यक है।
- माध्यम का PH 5 से 9 के बीच संतोषजनक परिणाम देता है।
भ्रूण संवर्धन का व्यावहारिक उपयोग (practical applications of embryo culture)
- इंटरजेनेरिक तथा इंटरस्पेसिफिक क्रॉस में यह पाया गया है कि संकर भ्रूण, भ्रुणपोष के अभाव में विकसित नहीं हो पाता है। इस संकर भ्रूण को यदि निकालकर कृत्रिम पोषक माध्यम पर उगाया जाए तो संकर पौधा प्राप्त किया जा सकता है।
- चावल में कई संकर किस्में भ्रूण संवर्धन विधि द्वारा प्राप्त की गई है।
- गेहूं और राई के संकरण में 13 से 16 दिनों के अंदर भ्रूण मृत हो जाता है। जब इस अविकसित भ्रूण को निकाल कर पोषक माध्यम पर उगाया गया तब गेहूं और राई का संकर पौधा बन सका।