प्रतिरक्षा तंत्र (Immune system) :-
प्रतिरक्षा तंत्र हमारे शरीर की संक्रमण से रक्षा करता है। इसके विभिन्न क्रियाकलाप द्वारा वातावरण में उपस्थित विषाक्त भोजन -पदार्थ, रसायन, परागकण तथा सूक्ष्म जीवों से रक्षा होती हैं।
- प्रतिरक्षा तंत्र allergic reaction, auto – immune diseases तथा organ transplant में भी महत्वपूर्ण रॉल निभाता है।
इसके अध्ययन को प्रतिरक्षा विज्ञान (Immunology) कहते हैं।
- यदि कोई एंटीजन या विषैले पदार्थ हमारे शरीर में प्रवेश कर जाए तो उन्हें नष्ट करने के लिए हमारे शरीर के अंदर एक रासायनिक पदार्थ का निर्माण होता है जिसे एंटीबॉडी कहते हैं। यह विषैले पदार्थ को उदासीन कर देता है या उससे मिलकर उसे अप्रभावी बना देता है। प्रतिरक्षा (immunity) की यह सामान्य क्रियाविधि है।
- प्रतिरक्षा तंत्र के घटक : – लसीका अंग (Lymphatic organs), ऊतक, कोशिका तथा कुछ घुलनशील अणु जैसे – एंटीबॉडी।
लसीका अंग (Lymphatic organs) :-
इन अंगों में लिंफोसाइट्स की उत्पत्ति, परिपक्वता तथा प्रसार (proliferation) होता है।
- अस्थि मज्जा (bone marrow) तथा thymus को प्राथमिक लसीका अंग जबकि प्लीहा (spleen), lymph nodes, tonsils छोटी आंत के Peyer’s patches तथा एपेंडिक्स को द्वितीय लसीका अंग कहते हैं।
प्रतिरक्षा तंत्र के प्रकार :-
यह दो प्रकार के होते हैं –
(1) अंतर्जात (innate)
(2)उपार्जित (acquire) या अनुकूली (adaptive)
अंतर्जाट प्रतिरक्षा तंत्र (Innate immunity) :-
यह शरीर के अंदर बाहरी कारकों को प्रवेश करने नहीं देता है। यह निम्नांकित चार प्रकार के रोधिकाओं द्वारा बना होता है।
(a) शरीर क्रियात्मक रोधिका :-
इसके अंतर्गत शरीर का स्राव (acid, saliva, tears), ये सभी रोगजनक सूक्ष्म जीव को रोकते हैं।
(b) शारीरिक रोधिका :-
यह बाहरी कारकों को शरीर के अंदर नहीं जाने देता है। जैसे त्वचा तथा श्लेष्मा झिल्ली आदि।
(c) फैगोसाइटिक रोधिका :-
यह बड़ी अनियमित आकार की कोशिका (WBCs) है जो विषाणु, सूक्ष्मजीव आदि को निगल जाती है। जैसे – polymorphonuclear Leukocytes (PMNL) – neutrophils, monocytes तथा natural killer (lymphocytes)।
(d) ज्वलनशील रोधिका :-
कभी-कभी कुछ संक्रमण या किसी कारणवश उतकों में कुछ आघात लगने से त्वचा फूल जाती है या लाल हो जाती है, दर्द करता है तथा ताप उच्च हो जाता है। यह एक ही स्थान में होगा एवं इसे ज्वलनशील अनुक्रिया कहते हैं। यह एक विशेष प्रकार के रसायन हिस्टामिन के लिए होता है। यह हिस्टामिन मास्ट कोशिका द्वारा स्रावित होता है। अनेक फैगोसाइटिक कोशिकाएं भी उस स्थान में आ जाती है एवं यह सभी सूक्ष्म जीवों को नष्ट कर देते हैं।
उपार्जित प्रतिरक्षा तंत्र (acquire immunity) :-
इस प्रकार के प्रतिरक्षा तंत्र विशेष प्रकार के सूक्ष्मजीवों को पहचान सकता है। ये मेमोरी पर आधारित है। जब हमारा शरीर पहली बार किसी pathogen से सामना करता है, तो बहुत कम तिब्रता का अनुक्रिया (response) पैदा करता है, जिसे प्राथमिक अनुक्रिया कहते हैं किंतु उसी pathogen से दूसरी बार सामना होती है, तो बहुत high intensity का द्वितीय अनुक्रिया पैदा होता है।
- प्राथमिक तथा द्वितीय अनुक्रिया blood में उपस्थित T – लिंफोसाइट तथा B – लिंफोसाइट की सहायता से होते हैं।
एंटीबॉडी (Antibody) :-
Pathogen के अनुक्रिया में B – लिंफोसाइट (B – cells) हमारे blood में प्रोटीन्स की army produce करते हैं, ताकि वे pathogen से लड़ सके। ये प्रोटीन्स antibodies कहलाते हैं।
- T – लिंफोसाइट्स (T – cells) स्वंय antibodies स्राव नहीं करते किंतु proteins उत्पन्न करने मे B – cells को सहायता करते हैं।
- हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार के antibodies उत्पन्न होते हैं जिनमें प्रमुख है – IgA, IgM, IgE तथा IgG
- चूंकि ये antibodies blood में पाई जाती है, इसलिए ऐसे अनुक्रिया को humoral immune response / Antibody Mediated Immunity (AMI) भी कहते हैं।
एंटीबॉडी की संरचना (structure of antibody) :-
प्रत्येक एंटीबॉडी अणु में 4 पेप्टाइड चैन होते हैं, जिसमें दो छोटी light chains तथा दो heavy chains होती है। इसलिए antibodies को H2 L2 के रूप में प्रदर्शित करते हैं।


सक्रिय तथा निष्क्रिय प्रतिरक्षा (Active and Passive Immunity) :-
सक्रिय प्रतिरक्षा :-
जब कोई पोषी एंटीजन का सामना करता है, तो उसकी शरीर में एंटीबॉडी पैदा होती है। ऐसे प्रतिरक्षा को सक्रिय प्रतिरक्षा कहते हैं।
जैसे – गर्भावस्था के दौरान अपरा (placenta) द्वारा माता से गर्भस्थ शिशु में एंटीबॉडीज IgG का स्थानांतरण, lactation के प्रारंभ दिनों में स्राव पीले तरल colostrum में उपस्थित एंटीबॉडी IgA का नवजात शिशु (infant) में जाना।
- एंटीजन, जीवित या मृत सूक्ष्मजीव अथवा अन्य प्रोटीन हो सकते हैं।
- सक्रिय प्रतिरक्षा, प्राकृतिक तथा कृत्रिम दोनों होते हैं।
प्राकृतिक सक्रिय प्रतिरक्षा :- सूक्ष्मजीव के प्राकृतिक संक्रमण के समय शरीर में बनने वाली प्रतिरक्षा को प्राकृतिक सक्रिय प्रतिरक्षा करते हैं।
कृत्रिम सक्रिय प्रतिरक्षा :- प्रतिरक्षीकरण के समय सूक्ष्मजीव को जानबूझकर शरीर में इंजेक्ट करने के फलस्वरुप बने प्रतिरक्षा को कृत्रिम सक्रिय प्रतिरक्षा करते हैं।
निष्क्रिय प्रतिरक्षा :-
जब शरीर की सुरक्षा के लिए रेडीमेड एंटीबॉडीज दी जाती है तो यह निष्क्रिय प्रतिरक्षा कहलाती है
जैसे – टेटनस में एंटिटॉक्सिन, सांप के जहर के विरुध एंटीबॉडीज।
स्व-प्रतिरक्षा (Auto – immunity) :-
स्व-प्रतिरक्षा तब होती है जब शरीर की प्रतिरक्षा तंत्र (Immune system) गलती से अपनी ही स्वस्थ कोशिकाओं और ऊतकों पर हमला कर देती है, जिससे कई तरह की बीमारियाँ हो जाती हैं।
- प्रतिरक्षा तंत्र शरीर की अपनी कोशिकाओं को “स्वयं” के रूप में पहचानने में विफल हो जाती है। इसके बजाय, यह स्व – प्रतिपिंड (auto – antibodies) और अन्य प्रतिरक्षा कोशिकाएँ उत्पन्न करती है जो इन स्वस्थ ऊतकों पर हमला करती हैं, जिससे सूजन और क्षति होती है।
जैसे – रूमेटाइड आर्थराइटिस (rheumatoid arthritis) स्व-प्रतिरक्षा रोग है।