प्रकाशिकी (Optics) :-
भौतिकी की वह शाखा जिसमें प्रकाश की प्रकृति तथा उसके गुणों का अध्ययन किया जाता है उसे प्रकाशिकी कहते हैं। मुख्य रूप से प्रकाशिकी को निम्नांकित दो भागों में बांटा गया है –
(1) किरण प्रकाशिकी (Ray optics)
(2) तरंग प्रकाशिकी (Wave optics)
किरण प्रकाशिकी (Ray optics) :-
प्रकाशिकी की इस शाखा में प्रयोग द्वारा कुछ साधारण नियमों का निरूपण किया जाता है, जिनके आधार पर किरण आरेख की सहायता से अन्य निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है। परावर्तन (Reflection) तथा अपवर्तन (Refraction) से प्रतिबिंब का बनना आदि विषयों का अध्ययन इसी भाग में किया जाता है।
तरंग प्रकाशिकी (Wave optics) :-
इसमें प्रकाश की प्रकृति एवं इसके संचरण का अध्ययन किया जाता है। इसमें प्रकाश का गमन, परावर्तन, अपवर्तन, व्यतिकरण (Interference), विवर्तन (Diffraction) और ध्रुवन (Polarisation) इत्यादि क्रियाओं का अध्ययन तरंग सिद्धांत को आधार मानकर किया जाता है।
प्रकाश (Light) :-
प्रकाश वह भौतिक कारक है, जिसकी सहायता से हमारी आंखें वस्तुओं को देख पाती है। आंखें और प्रकाश एक दूसरे के पूरक है। प्रकाश विकिरण-ऊर्जा का एक रूप है जो हमारे दृष्टि संवेदन (Sensation of vision) को उत्तेजित करता है।
प्रकाश विद्युत चुंबकीय तरंग के रूप में निर्वात अथवा किसी द्रव्यात्मक माध्यम में संचरन करता है। मानव नेत्र में दृष्टि की संवेदना उत्पन्न करने वाली इस विद्युत चुंबकीय विकिरण को प्रकाश कहा जाता है।
प्रकाश की प्रकृति (Nature of light) :-
प्रकाश की प्रकृति तथा इसके संचरण से संबंधित दो सिद्धांत दिए गए हैं। हम जानते हैं कि ऊर्जा का संचरण एक स्थान से दूसरे स्थान तक दो विधियों से हो सकता है – पहली विधि में, पदार्थ के कण स्वयं ऊर्जा लेकर स्थानांतरित होते हैं, जिसे कणिकामय संचरण (Corpuscular propagation) कहा जाता है। दूसरी विधि में ऊर्जा का संचरण तरंग के रूप में होता है, जिसे तरंग संचरण (Wave propagation) कहा जाता है। इन्हीं मान्यताओं के आधार पर प्रकाश की प्रकृति से संबंधित निम्नलिखित दो सिद्धांत प्रतिपादित किए गए हैं।
(a) न्यूटन का कणिका सिद्धांत (Newton’s corpuscular theory)
(b) हाइगेंस का तरंग सिद्धांत (Huygens’ wave theory)
न्यूटन का कणिका सिद्धांत (Newton’s corpuscular theory) :-
प्रकाश के कणिका सिद्धांत का प्रतिपादन न्यूटन ने 1675 में किया था। इस सिद्धांत के अनुसार, प्रकाश के प्रत्येक स्रोत अर्थात दिप्त वस्तुओं (luminous bodies) से प्रकाश अत्यंत सूक्ष्म कणिकाओं के रूप में उत्सर्जित होता है, जो किसी समांगी माध्यम अथवा निर्वात में सरलरेखीय पथ पर निश्चित चाल से गमन करता है। ये कणिकाएं जब हमारे नेत्र में प्रवेश करती है तब ये दृष्टि की संवेदना उत्पन्न करती है। अदिप्त (non-luminous) वस्तुएं प्रकाश कणिकाओं को विभिन्न दिशाओं में प्रकीर्णित (scatter) करती है जिनके द्वारा हम वस्तुओं को देख पाते हैं।
- कणिका सिद्धांत को आधार मानकर प्रकाश के सरलरेखीय पथ में गमन, परावर्तन तथा अपवर्तन की व्याख्या की जा सकती है। परंतु अपवर्तन की व्याख्या करने पर इस सिद्धांत के आधार पर विरल माध्यम की अपेक्षा सघन माध्यम में प्रकाश की चाल अधिक माननी पड़ती है, जो प्रायोगिक परिणाम के बिल्कुल विपरीत है।
- कणिका सिद्धांत के आधार पर प्रकाश के व्यतिकरण (Interference), विवर्तन (Diffraction) तथा ध्रुवन (polarisation) आदि घटनाओं की व्याख्या नहीं की जा सकती है। इन असफलताओं के कारण कणिका सिद्धांत को मान्यता नहीं दी जा सकी है।
हाइगेंस का तरंग सिद्धांत (Huygens’wave theory) :-
प्रकाश के तरंग सिद्धांत का प्रतिपादन सर्वप्रथम हॉलैंड के भौतिक वैज्ञानिक क्रिश्चियन हाइगेंस ने 1678 में किया। हाइगेंस के अनुसार प्रकाश का संचरण तरंग गति के रूप में होता है। चूंकि तरंग की उत्पत्ति के लिए एक द्रव्यमान माध्यम की आवश्यकता होती है और सूर्य से पृथ्वी के वायुमंडल में आनेवाले प्रकाश को निर्वात (vacuum) से गुजरना पड़ता है, अतः प्रकाश तरंगों की उत्पत्ति एवं संचरण के लिए काल्पनिक माध्यम ईथर (ether) की कल्पना की गई। इस माध्यम का गुण अत्यंत ही कम घनत्व वाले प्रत्यास्थ ठोस (elastic solid) के सदृश्य है तथा इसे निर्वात या किसी भी पदार्थ के समान रूप से व्याप्त माना गया है।
- हाइगेंस का ऐसा विश्वास था कि प्रकाश तरंगें अनुदैर्ध्य तरंगे है जो तरंग की गति की दिशा में काल्पनिक माध्यम ईथर के कणों के कंपन के कारण उत्पन्न होती है। परंतु, फ्रेनल तथा यंग ने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध कर दिया कि प्रकाश तरंगें अनुदैर्ध्य तरंगे न होकर अनुप्रस्थ तरंगे है।
- प्रकाश की तरंगों को अनुप्रस्थ तरंग मारने पर ही प्रकाश के ध्रुवण (Polarisation) की सफल व्याख्या हो पाती है। अतः तरंग सिद्धांत को ही प्रकाश का सही सिद्धांत माना गया जिसके अनुसार प्रकाश एक अनुप्रस्थ तरंग गति है।