पशु प्रजनन (Animal breeding) :-
पशु प्रजनन पशुपालन का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जिसका मुख्य उद्देश्य पशुओं के उत्पादन में वृद्धि करना तथा उत्पादों की वांछित गुणवत्ता में सुधार करना है।
पशुओं की उत्पादकता बढ़ाने में उनके नस्ल का बहुत बड़ा योगदान होता है। नस्ल पशुओं का वह समूह है जो वंश तथा सामान्य लक्षणों के समान हो। सामान्यता एक नस्लवाली पशु के आकार, आकृति, बाहरी दिखावट में समानता होती है।
पशु प्रजनन की विधियां (Methods of Animal breeding) : –
पशु प्रजनन की विधियां निम्नलिखित है –
1. अंतः प्रजनन (Inbreeding) :-
जब एक ही नस्ल के पशुओं के बीच प्रजनन होता है, तब इस प्रकार के पशु प्रजनन को अंतः प्रजनन करते हैं। ऐसे प्रजनन में एक ही नस्ल के पशुओं के बीच 4 – 6 पीढ़ियों तक संगम (mating) कराया जाता है।
- अंतः प्रजनन हानिप्रद अप्रभावी जीन (harmful recessive gene) को उजागर करता है। यह प्रभावी जीन चयन द्वारा निष्कासित किए जा सकते हैं।
- अंतः प्रजनन द्वारा श्रेष्ठ प्रकार के जीनों का संचयन किया जा सकता है, साथ में कम वांछनीय जीनों के निष्कासन में मदद करता है।
- सतत अंतः प्रजनन से जनन क्षमता तथा उत्पादकता घट जाती है। इससे उत्पन्न संतति पराया कमजोर होते हैं। अंतः प्रजनन द्वारा उत्पन्न इन हानियों को अंतः प्रजनन अवसादन (interbreeding depression) कहते हैं।
2. बहि: प्रजनन (Outbreeding) :-
इस प्रकार के पशु प्रजनन में उन पशुओं से संगम (mating) कराया जाता है जिनका आपस में कोई संबंध नहीं होता है। ऐसे प्रजनन में एक ही नस्ल के दो पशुओं के बीच संगम हो सकता है किंतु दोनों पशुओं के पूर्वजों में समानता नहीं हों। बहि: प्रजनन में भिन्न-भिन्न नस्लों तथा भिन्न-भिन्न प्रजातियों के बीच प्रजनन सम्मिलित हैं।
3. बहि: संकरण (Outcrossing) :-
इस विधि में ऐसे पशुओं के बीच संगम (mating) कराया जाता है जिनकी 4 – 6 पीढ़ियों तक नर तथा मादा दोनों तरफ की उभयवंशावली (common ancestors) नहीं होनी चाहिए। संगम की यह विधि ऐसे पशुओं के प्रजनन में श्रेष्ठ मानी जाती है जिनकी उत्पादन क्षमता तथा मांस प्रदाय दर औसत से कम हो जाती है।
4. संकरण (cross breeding) :-
इस प्रकार के प्रजनन में श्रेष्ठ नस्ल के नर तथा मादा के बीच संगम कराया जाता है। इस प्रकार के संगम से दोनों पशुओं के श्रेष्ठ गुणों के संयोजन में मदद मिलती हैं। इस विधि का प्रयोग कर पशुओं की नई स्थायी किस्में विकसित की गई है। इस प्रकार विकसित नस्लें वर्तमान नस्लों से श्रेष्ठ होती है, क्योंकि इस संकरण से श्रेष्ठ नर तथा श्रेष्ठ मादा का संगम कराया जाता है।
संकरण विधि द्वारा भेंड़ की एक नई नस्ल हिसरडैल विकसित की गई है। यह बीकानेरी ऐवीज तथा मैरीनो रेम्स के संकरण से विकसित की गई।
हिसरडैल वर्तमान भेंड़ से श्रेष्ठ गुण वाले भेंड़ है।
कृत्रिम वीर्यसेचन (Artificial insemination) :-
पशु प्रजनन की इस विधि में एक श्रेष्ठ नर जनक का चयन किया जाता है, उस नर से प्राप्त वीर्य को मादा के जनन अंग में प्रजनक (breeder) द्वारा स्थापित किया जाता है।
वीर्य का उपयोग या तो प्राप्त करने के तुरंत बाद करते हैं या उसे हिमकृत (frozen) में रख कर बाद में आवश्यकतानुसार इस्तेमाल किया जाता है। हिमकृत करने के लिए तरल नाइट्रोजन जिसका तापमान -196⁰C होता है का प्रयोग किया जाता है। हिमकृति रूप में वीर्य को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जा सकता है।
कृत्रिम वीर्यसेचन के विभिन्न चरण (Different steps of artificial insemination)
कृत्रिम वीर्यसेचन निम्नलिखित चरणों में पूरा होता है –
(a) वीर्य का संचयन :-
उत्तम गुण वाले उन्नत नस्ल के एक नर पशु को कृत्रिम तरीके से उत्तेजित कर उसके वीर्य का संचयन किया जाता है। नर पशु को उत्तेजित करने के लिए यांत्रिक या वैद्युत विधियों का इस्तेमाल किया जाता है। भारतवर्ष में कई संस्थानों में वीर्य बैंक स्थापित किए गए हैं।
(b) वीर्य का परिरक्षण :-
संचित वीर्य को अत्यधिक कम तापमान पर रखा जाता है। इन्हें रासायनिक विधि से परिरक्षित किया जाता है, फिर इन्हें पतला कर छोटी-छोटी शीशियों में बंद करके रखा जाता है।
(c) निषेचन के लिए वीर्य को प्रविष्ट करना :-
परिरक्षित वीर्य को चयन किए गए मादा की योनि मैं सुई द्वारा प्रविष्ट कराकर मादा के अंडे को निषेचित किया जाता है।
कृत्रिम वीर्यसेचन से लाभ :-
- कृत्रिम गर्भधान से एक तरफ वांछित गुणोंवाली संतति की प्राप्ति की जा सकती है वहीं दूसरी ओर सामान्य संगम की समस्याओं से भी छुटकारा मिल सकता है।
- पशुओं के प्रजनन की यह सस्ती विधि है क्योंकि एक साढ़ के वीर्य से लगभग 3000 गायों को निषेचित किया जा सकता है।
- परिरक्षित वीर्य को सुगमता से दूसरे सुदूर स्थानों पर ले जाया सकता है।
- इस विधि द्वारा विदेशों से उन्नत नस्ल के वीर्य आयात कर देशी किस्मों के पशुओं का नस्ल सुधार किया जाता है।
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