दर्शन कोण (Visual Angle) :-
किसी वस्तु द्वारा नेत्र पर अंतरिक्ष कोण को दर्शन कोण कहा जाता है। नेत्र को किसी वस्तु का छोटा या बड़ा दिखाई देना दर्शन कोण के मान पर निर्भर करता है।
किसी वस्तु को नेत्र के निकट लाने पर उसके द्वारा नेत्र पर अंतरित कोण बढ़ता जाता है और रेटिना पर बना प्रतिबिंब का विस्तार भी बढ़ता जाता है, जिससे वस्तु बड़ा दिखाई देता है।
स्पष्ट दृष्टि के लिए वस्तु को नेत्र के समीप रखने की एक विशेष सीमा होती है। इस विशेष दूरी को नेत्र के लिए स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी कहा जाता है। सामान्य नेत्र के लिए यह दूरी 25 सेंटीमीटर होती है तथा इसे प्रायः D से प्रदर्शित किया जाता है।
कृत्रिम विधियों से visual Angle बढ़ा कर किसी वस्तु को साफ-साफ देखा जा सकता है। इसके लिए सूक्ष्मदर्शी तथा दूरदर्शी जैसे प्रकाशिक यंत्रों का उपयोग होता है।
आवर्धन क्षमता या कोणीय आवर्धन (Magnifying power or Angular Magnification):-
किसी स्थान पर बने अंतिम प्रतिबिंब द्वारा नेत्र पर बनाए गए दर्शन कोण तथा उसी स्थान पर रखी वस्तु द्वारा खाली नेत्र पर बनाया गया दर्शन कोण के अनुपात को उस यंत्र की आवर्धन क्षमता कहा जाता है, अर्थात
इसे नेत्र का कोणीय आवर्धन कहा जाता है।