जैव नियंत्रण कारक के रूप में सूक्ष्मजीवों का उपयोग (Microbes as Biocontrol agents) :-
पीड़कों को जैविक रूप से नियंत्रित करने के लिए “सूक्ष्मजीवों” का सहारा लिया जाता है। इसके अंतर्गत कृषक कीटों एवं पीड़कों का पूर्ण रूप से नष्ट नहीं करते हैं, बल्कि इसे एक स्तर पर नियंत्रित रखते हैं। इसके लिए विभिन्न प्रकार के संतुलनों एवं अवरोधों का सहारा लिया जाता है।
जैव नियंत्रण के लिए खेतों में लगने वाले पीड़कों तथा परभक्षी के जीवन-चक्र, इनके द्वारा भोजन ग्रहण करने की विधि एवं उनके वास स्थान का अध्ययन कर उचित जानकारी प्राप्त की जाती है। इसके ज्ञान से हानिकारक पीड़कों को जैविक विधि से नियंत्रण करने में मदद मिलती है। जैविक विधि द्वारा पीड़कों का नियंत्रण पर्यावरण के लिए प्रतिकूल नहीं होता है। इस विधि में विभिन्न प्रकार के जीवों की वृद्धि के लिए अनुकूल वातावरण तैयार कर सिर्फ हानिकारक जीवों की संख्या को नियंत्रित किया जाता है।
- ऐफिडों तथा मच्छरों से छुटकारा पाने के लिए क्रमशः भृंग (Beetle) जिनके शरीर पर लाल तथा काली धारियां पाई जाती है एवं ब्याध पतंग (Dragonfly) का प्रमुख उपयोग किया जाता है।
- बटरफ्लाई कैटरपिलर्स के नियंत्रण हेतु जैव नियंत्रण कारक के रूप में Bacillus thuringiensis (Bt) बैक्टीरिया का प्रयोग किया जाता है। इस बैक्टीरिया के शुष्क स्पोर्स थैली में उपलब्ध होते हैं जिन्हें पानी में मिलाकर वैसे वृक्षों पर छिड़काव किया जाता है जिनकी पत्तियां कीट लार्वा द्वारा खा ली जाती है, जैसे सरसों, फल-वृक्ष आदि। पतियों पर वृद्धि करने वाले ये लार्वा पतियों के साथ बैक्टीरिया को भी खा लेते हैं जो इनकी पाचन नली में जाकर वृद्धि करते हैं। इन बैक्टीरिया से जहरीला रसायन निकलता है जिससे लार्वा की मृत्यु हो जाती है।
- आनुवंशिक अभियांत्रिकी (Genetic engineering) की विधियों द्वारा Bacillus thuringiensis (Bt) के टॉक्सिन के लिए जिम्मेवार जीन को पौधों में सफलतापूर्वक आरोपित कर पीड़क प्रतिरोधी बनाया गया है जिस पर पीड़कों का प्रकोप नही होता है। जैसे :- Bt-कॉटन।
- जैव नियंत्रण कारक के रूप में ट्राइकोडर्मा नामक कवक का उपयोग भी पादप रोगों के जैविक नियंत्रण में किया जाता है।