जीवन की उत्पत्ति के सिद्धांत

जीवन की उत्पत्ति के सिद्धांत (Theories about Origin of life) :-

जीवन की उत्पत्ति के सिद्धांत को लेकर अनेकों मत प्रस्तुत किए गए हैं, जिनमें मुख्य है – 1.स्वतः जनन 2. विशेष सृष्टि 3. कॉसमोजोइक सिद्धांत 4.प्राकृतिवादी सिद्धांत 5.चार्ल्स डार्विंन का मत 6. हेल्डेन का मत 7. आपैरिन की परिकल्पन1

1. स्वतः जनन (Spontaneous generation) :-

  1. इस मत के अनुसार अधिकांश जंतुओं की उत्पत्ति निर्जीव वस्तुओं से होती है। नदी के कीचड़ से मछली, मेंढक, साँप, घड़ियाल इत्यादि अपने आप पैदा हो जाते हैं। इसी प्रकार मक्खियां मांस से तथा तितलियां छेने से उत्पन्न होती है ↩︎

रेडी का प्रयोग :-

इटली के एक वैज्ञानिक फ्रांसिस्को रेडी ने 1980 में एक प्रयोग द्वारा जीवन की उत्पत्ति के सिद्धांत से संबंधित स्वतः जनन को खारिज कर दिया।

रेडी ने मांस के टुकड़ों को चौड़े मुंह वाले जारों में रखा कुछ के मुंह कागज या मलमल के कपड़े से बंद थे एवं कुछ जारों के मुंह खुला थे। इनमें मांस के टुकड़े सर रहे थे। कुछ दिनों के बाद रेडी ने बंद जार में कोई भी डिंभक नहीं पाया मक्खियों ने कागज एवं मलमल के कपड़े के ऊपर अंडे दिए थे।

जबकि खुले जार में मक्खी के डिंभक पाए गए इनमें मक्खियां मांस तक पहुंच गए और उन्होंने वहां अंडे दिए जिससे डिंभक उत्पन्न हुई। इससे परिणाम निकला की मक्खियां मांस से नहीं वरना अंडों से उत्पन्न होती है।

2. विशेष सृष्टि (Special creation) :-

इस मतानुसार जीव की उत्पत्ति किसी अलौकिक शक्ति के द्वारा एक बार अथवा थोड़े-थोड़े समय के अंतराल में हुई।

3. कॉसमोजोइक सिद्धांत (Cosmozoic theory) :-

आरहेनियस ने 1903 में कहा था कि जीव की उत्पत्ति हुई नहीं वरना पदार्थ की भांति वह भी इस ग्रह पर हमेशा से विद्यमान रहे हैं। किंतु यह हम जानते हैं कि तत्व ही इस पृथ्वी पर हमेशा से नहीं रहा है तो फिर जीव हमेशा से कैसे विद्यमान रह सकता है। उनकी दूसरी परिकल्पना के अनुसार जीव की उत्पत्ति अन्य ग्रहों पर हुई और वहां से पृथ्वी पर स्थानांतरित हुए। इस मत को मान्यता प्राप्त नहीं है।

4. प्रकृतिवादी सिद्धांत (Naturalistic theory) :-

जीवन की उत्पत्ति के इस सिद्धांत के प्रवर्तकों का कहना है कि आदि समुद्र में जीव अनुकूल वातावरण में स्वतः उत्पन्न हुआ। उस समय समुद्रों में अन्य पदार्थों के अतिरिक्त प्रचुर मात्रा में अनेक कार्बनिक पदार्थ भी मौजूद थे जो जीवों में भी पाए जाते हैं। अधिकांश आधुनिक वैज्ञानिक इस सिद्धांत से काफी सहमत है।

5. चार्ल्स डार्विन का मत (Charles Darwin’s Opinion) :-

1858 में चार्ल्स डार्विन ने कहा था कि जीवन उत्पत्ति के समय वर्तमान युग से स्थितियां बिल्कुल भिन्न थी उनका अनुमान था कि अमीनो अम्ल जीव के शरीर के बाहर मौजूद था उन्होंने फास्फेट एवं अमोनिया का ताप एवं प्रकाश के प्रभाव से संयोजन कर प्रोटीन संश्लेषण किया, उन्होंने यह भी कहा कि अब यह संभव नहीं है कि यह पदार्थ जीव के बाहर रह सके क्योंकि सूक्ष्म जीव इनको शीघ्र ही नष्ट कर देंगे।

6. हेल्डेन का मत (Haldane’s Opinion) :-

वर्तमान शताब्दी के महान ब्रिटिश जीव वैज्ञानिक जेo बीo एसo हेल्डन ने यह कहा कि आदि वातावरण में CO2, अमोनिया एवं जलवाष्प उपस्थित थे। पराबैंगनी प्रकाश के प्रभाव से कार्बनिक यौगिक का संश्लेषण हुआ। जैसे – शर्करा, एमीनो अम्ल आदि। हेल्डेन का विश्वास था कि यह पदार्थ आदि समुद्र में एकत्रित होते गए इसके फलस्वरुप शर्करा, वसा, प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल इत्यादि का निर्माण संभव हो सका।

7. ओपैरिन की परिकल्पना (Oparin’s Conception) :-

प्रसिद्ध रूसी जीव वैज्ञानिक एo ओपैरिन ने 1938 में अपनी पुस्तक द ओरिजिन ऑफ लाइफ में सर्वप्रथम बहुत ही सुस्पष्ट परिकल्पना जीवन की उत्पत्ति पर प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि आदि समुद्रों में जीवन की उत्पत्ति के पूर्व अनेक कार्बनिक यौगिक उपस्थित थे। इन कार्बनिक यौगिक ने आपस में अभिक्रिया कर अधिक से अधिक जटिल रचनाओं का निर्माण किया इसके फलस्वरुप एक ऐसी रचना का निर्माण हुआ जिसे हम जीव का सकते हैं।

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