दर्पण सूत्र (The mirror formula) :-
मान लिया कि M एक अवतल दर्पण है जिसके मुख्य अक्ष पर एक वस्तु OA स्थित है। वस्तु के बिंदु A के प्रतिबिंब का स्थान निर्धारित करने के लिए दो किरणें खींची गई है – पहली, वक्रता केंद्र से होकर जाने वाली किरण तथा दूसरी, मुख्य अक्ष के समांतर किरण। इन दोनों किरणों के संगत की परावर्तित किरण खींचने पर वे बिंदु B पर मिलती है।
अतः A का वास्तविक प्रतिबिंब B है। यदि वस्तु OA के अन्य बिंदुओं के लिए उपर्युक्त बनावट की जाए तो उनके संगत के वास्तविक बिंदु प्रतिबिंब रेखा IB के अनुरेख बनेंगे।
अतः वस्तु OA का अवतल दर्पण द्वारा वास्तविक प्रतिबिंब IB प्राप्त होता है।
उत्तल दर्पण में भी यह दर्पण सूत्र लागू होता है। यह गोलीय दर्पण (अवतल और उत्तल) का महत्वपूर्ण दर्पण सूत्र है।
उत्तल दर्पण के सामने बिंदु O पर स्थित वस्तु का प्रतिबिंब दर्पण के पीछे बिंदु I पर बनता है, जो अभासी होता है।
आवर्धन (magnification) :-
प्रतिबिंब की ऊंचाई और वस्तु की ऊंचाई के अनुपात को आवर्धन कहा जाता है। आवर्धन को m से सूचित किया जाता है।
मान लिया कि किसी गोलीय दर्पण के मुख्य अक्ष पर OA लंबाई की एक वस्तु अक्ष के लंबवत रखी है। चित्र 1.6a (अवतल दर्पण) में प्रतिबिंब वस्तु की अपेक्षा उल्टा दिखाया गया है और चित्र 1.6b (उत्तल दर्पण) में वस्तु की अपेक्षा सीधा प्रतिबिंब दिखाया गया है।
यदि प्रतिबिंब सीधा हो तो उसकी ऊंचाई को धनात्मक लिया जाता है। परंतु, यदि प्रतिबिंब उल्टा हो तो उसकी ऊंचाई ऋणात्मक ली जाती है।
मान लिया कि बिंदु A से चलनेवाली किरण AP ((चित्र 1.6a) दर्पण के ध्रुव पीपर आपकी तो होती है और परावर्तन के बाद B से होकर गुजरती है, क्योंकि B, A का प्रतिबिंब है। इस प्रकार वस्तु OA का प्रतिबिंब IB है।