कुक्कुट पालन :
मांस तथा अंडे की प्राप्ति के लिए कुक्कुट पालन किया जाता है।
- कुक्कुटपालन के अंतर्गत मुर्गी के अलावे बत्तख, टर्की तथा गीज (Geese) को भी सम्मिलित किया जाता है।
- प्रचलित भाषा में कुक्कुट पालन को मुर्गी पालन भी कहा जाता है जो पशुपालन का महत्वपूर्ण भाग है।
- अंडे देने वाली मुर्गियों को एग लेयर्स जबकि अधिक मांस प्राप्त करने के उद्देश्य से पाली जानेवाली मुर्गियां बॉयलर कहलाती है।
- मुर्गियों की देसी किसमें निम्नलिखित है – असील, बसरा, ब्रह्मा, कोचीन, चिरगांव, घागुस।
- देशी मुर्गियों की उत्पादकता कम होती है। औसतन एक देसी मुर्गी 1 वर्ष में लगभग 60 अंडे देती है।
- विदेशी नस्लों की प्रमुख मुर्गियां है – व्हाइट लेगहॉर्न, रॉक ऑस्ट्रालॉप, ससेक्स, ब्लैक माइनॉर्क, रोड आइलैंड रेड आदि।
- देशी नस्ल की मुर्गियों का प्रजनन उच्च नस्ल की विदेशी प्रजातियों से कराकर वांछित गुणोंवाली मुर्गीयां प्राप्त की गई है। ऐसी मुर्गियों से अधिक मांस उत्पाद मिलता है तथा इस नस्ल की मुर्गीयां ज्यादा अंडे भी देती है। ऐसी संकर मुर्गियों की रोग निरोधक क्षमता भी अधिक होती है।
- देश में विकसित की गई संकर नस्ल की मुर्गीयों में ILS-82, HH-260, B-77 आदि प्रमुख हैं।
कुक्कुट फार्म प्रबंधन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है :
1. बेहतर नस्ल :-
- संकर नस्ल वाली मुर्गियां शीघ्र परिपक्व हो जाती है तथा इनकी मृत्यु दर भी कम होती है।
- संकर किस्मों में ILS-82 तथा B-77 प्रति वर्ष क्रमशः लगभग 200 तथा 260 अंडे देती है।
- राष्ट्रीय कुक्कुट प्रजनन फार्म भुवनेश्ववर, मुंबई, चंडीगढ़ तथा हिसारघट्टा में अवस्थित है। उनके द्वारा उन्नत प्रजाति की मुर्गियो के लिए परियोजनााएं चलाई जा रही है।
2. सुरक्षित परिस्थितियां :-
- कुक्कुट आवास इस प्रकार होना चाहिए जिसमें कुक्कुट प्रतिकूल परिस्थितियों जैसेे – वर्षा, कड़ी धूप, अत्यधिक ठंड तथा परभक्षी से सुरक्षित रह सके।
3. कुक्कुटों का आहार :-
- इनके संतुलित आहार में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज, विटामिन तथा शुद्ध जल का होना आवश्यक है।
- कैल्शियम तथा फॉस्फोरस की समुचित मात्रा अंडा देनेेवाली मुर्गियोंं के लिए काफी आवश्यक होता है।
4. कुक्कूटों के रोग :-
- मुर्गियों को होने वाली बीमारियों मेंं रानीखेत, हैजा, वर्ड फ्लू आदि प्रमुख हैं। ये प्रायः बैक्टीरिया, वायरस के संक्रमण से होता है।
- संक्रमण का नियंत्रण तथा उपचार समय रहते न होने से रोग महामारी की तरह फैल जाता है।
- रोगों से बचाव के लिए समय-समय पर टीके लगवाना आवश्यक है।