कीट परागण (Entomophily) क्या होता है। कीट परागित पुष्पों में अनुकुलन के बारे में बताएं।

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कीट परागण (Entomophily) :-

वैसे पुष्प जिसमें कीट द्वारा परागण होता है, उसे कीट परागित पुष्प कहा जाता है तथा पुष्प में इस प्रकार से होने वाले परागण को कीट परागण कहते हैं। कीट परागण के लिए मधुमक्खियां, तितलियां इत्यादि पुष्प से मकरंद (nectar) प्राप्त करने के लिए आकर्षित होते है।

जैसे – प्राइमुला, यक्का (Yucca) या अंडाफल, साल्विया या गार्डेन सेड आदि पुष्पों में कीट परागण होते हैं।

  • प्राइमुला में पुष्प दल संयुक्त होकर नालवत रचना बनाते हैं और इसके ऊपर दलपुंज (corolla) फैले होते हैं। ऐसे पुष्प दो प्रकार के होते हैं –

(a) पिनआइड (pin-eyed) :- इनमें वर्तिका लंबी होती है इसजाती कारण वर्तिकाग्र पुष्पदल नलिका के मुख के पास पहुंच है।

(b) थ्रमआइड (thrumeyed) :- इनमें वर्तिका छोटी होती है तथा पुंकेसर लंबे हो कर पुष्पदल के मुख के पास पहुंच जाते हैं।

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चित्र :- प्राइमुला वल्गैरिस।

मधुमक्खी थ्रम-आइड पुष्प पर बैठकर मकरंद खोजती है उस समय परागकण उसके सिर पर चिपक जाते हैं। जब यह मक्खी पिन-आइड पुष्प पर बैठकर मकरंद लेने का प्रयास करती है तो परागकण वर्तिकाग्र पर चिपक जाते हैं तथा साथ-साथ पिन-आइड पुष्प के परागण मक्खी के सिर पर चिपक जाते हैं और मक्खी के थ्रम-आइड पुष्प पर जाने से पर-परागण होता है।

  • साल्विया या गार्डन सेज पुष्प के बाह्य दलपुंज और दलपुंज द्वि-ओष्ठी (bilipped) होते हैं। उपरी ओष्ठ में पुंकेसर तथा वर्तिका ढँकी रहती है तथा नीचे का ओष्ठ रूपांतरण से चबूतरा बनाता है जिस पर कीट आसानी से बैठ सकते हैं। जब मधुमक्खी निचले ओष्ठ पर बैठकर शुंडिका (proboscis) दलनलिका के निचले भाग तक फैलाकर मकरंद लेना चाहती है तब उसी समय परागकोष फट जाते हैं तथा परागकण मधुमक्खी की पीठ पर बिखर जाते हैं। जब मधुमक्खी दूसरे पुष्प पर जाती है उस समय परागकण वर्तिकाग्र से चिपक जाते हैं।
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चित्र :- साल्विया में कीट परागण।
  • यक्का के पुष्प रात में खिलते हैं। परिपक्व होने पर पुष्प के वर्तिकाग्र परागकोष से काफी ऊंचाई पर स्थित होते हैं। पुष्प की गंध से आकर्षित होकर मादा कीट उसकी ओर आकर्षित होती है, इस क्रिया में परागकण मादा कीट से चिपक जाते हैं। जब मादा कीट दूसरे पुष्प में अंडे देने के लिए जाती है उस समय परागकण वर्तिकाग्र के संपर्क में आ जाते हैं। इस प्रकार पुष्प परागित हो जाता है।
  • कुछ पौधे जैसे – बरगद, पीपल, अंजीर इत्यादि में पुष्प नाशपाती के आकार के पुष्पक्रम में बंद रहते हैं। इसमें एक छिद्र होता है जिसके माध्यम से कीट पात्र में प्रवेश करते हैं। इस पात्र में नर, मादा तथा बंध्य पुष्प होते हैं। मादा पुष्पों के बीजांड में कीट अंडे देते हैं ये अंडे शीघ्र ही कीट में परिवर्तित हो जाते हैं। इसी समय परागकोष में परागकण परिपक्व होते हैं, इन परागकोषों के फटने से परागकण कीट के शरीर से चिपक जाते हैं। जब ये कीट दूसरे पुष्प के पात्र में प्रवेश करते हैं तो उस पात्र में स्थित मादा पुष्प में कीट परागण होता है।

कीट-परागित पुष्पों में अनुकूलन (Adaptations in Insect-pollinated flowers) :-

1. पुष्प का रंग :-

पुष्प जितना रंगीन होता है, कीट उस पर उतना ही ज्यादा आकर्षित होते हैं । कीटों को आकर्षित करने वाले पुष्पों का रंग नीला, पीला, लाल, नारंगी या मिश्रित होता है।

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चित्र :- रंगीन पुष्प की ओर कीट का आकर्षण।

2. सुगंध :-

पुष्पों की सुगंध कीट को आकर्षित करती है। इस प्रकार के पुष्प मुख्यत: रात को खिलते हैं, जैसे – रात की रानी, हरसिंगार, जूही।

कुछ पुष्प ऐसी गंध फैलाती हैं जो मनुष्य को पसंद नहीं है परंतु छोटे कीटों को बहुत पसंद आती है। जैसे – जमीकंद।

3. मकरंद (Nectar) :-

दलपत्रों या पुंकेसर के आधार पर मकरंद ग्रंथियां होती है। इन ग्रंथियों से एक मीठे रस का स्राव होता है जिसके लिए कीट इस प्रकार के पुष्प की ओर आकर्षित होते हैं। पुष्प में प्रवेश करने पर कीट के शरीर में परागकण चिपक जाते हैं। जब यह कीट दूसरे पुष्प पर जाती है उस समय मकरंद चूसने के क्रम में कीट के शरीर पर चिपके परागकण वर्तिकाग्र पर चिपक जाते हैं। इस प्रकार पर-परागण की क्रिया संपन्न होती है।

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