आनुवंशिकता (Heredity) :-
संतति में पैतृक लक्षणों के संचरण को आनुवंशिकता कहते हैं। यह संचरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जनकों से युग्मको (gametes ) के द्वारा होता है। वंशागति (inheritance) को आनुवंशिकता का आधार कहते हैं।
एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचारित होनेवाले लक्षण पैतृक लक्षण या आनुवंशिक लक्षण कहलाते हैं।
आनुवंशिकी (Genetics) :-
जीव विज्ञान की जिस शाखा में वंशागति तथा विविधता का अध्ययन किया जाता है उसे आनुवंशिकी (Genetics) कहते हैं।
ग्रेगर जोहान मेंडल को आनुवंशिकी का जनक कहा जाता है। आनुवंशिकता के नियमों का अध्ययन सर्वप्रथम ऑस्ट्रिया में ब्रुन नामक स्थान के एक मठ के पादरी ग्रेगर जोहान मेंडल ने मटर के पौधों पर प्रयोग द्वारा किया। सन 1857 से 1865 तक मेंडल ने कठिन परिश्रम द्वारा अपने प्रयोगों के आधार पर सांख्यिकीय आंकड़े तैयार किए और अपने प्रयोगों को 1865 में नेचुरल हिस्टोरिकल सोसाइटी ऑफ ब्रुन की एक बैठक में प्रस्तुत किया।
सन् 1900 में तीन वैज्ञानिकों (होलैंड के Hugo de Vries, जर्मनी के Carl Correns तथा ऑस्ट्रिया के Erich von Tschermak) विभिन्न देशों में मेंडल द्वारा की गई खोजों का पुष्टिकरण किया। इन वैज्ञानिकों ने मेंडल की स्मृति में उनके अध्ययनों को मेंडल के वंशागति या आनुवंशिकता के नियमों के रूप में मान्यता दिलाई।
विविधता (Variation) :-
माता – पिता तथा संतानों के बीच लक्षणों में अंतर को विविधता कहते हैं। इसका मुख्य कारण लैंगिक जनन है।
पादपों तथा प्राणियों में पाई जाने वाली प्राकृतिक विविधताओं से लाभदायक लक्षणों वाले जीवों को select कर जब प्रजनन (breeding) कराई जाती है तब उनसे इच्छित लक्षणों (desirable characters) के जीव प्राप्त होते हैं।
जैसे – पुरानी जंगली गायों के कृत्रिम चयन तथा पालतू बनाकर उच्च भारतीय किस्म के गाय साहिवाल (पंजाब) प्राप्त किया गया है।
एकसंकर क्रॉस (Monohybrid cross) :-
जब दो पौधों के बीच इकाई लक्षण (unit trait) के आधार पर संकरण कराया जाता है तो इसे एकसंकर क्रॉस कहते हैं। इसमें मेंडल ने मटर के विपरीत लक्षणों के जोड़े में एक लंबा (Tall) तथा दूसरा बौना ( Dwarf ) पौधे के बीच आपस में क्रॉस कराया तो इनसे उत्पन्न सभी पौधे लंबे प्राप्त हुए। इन सभी को F₁ पीढी या प्रथम पीढी कहा गया।
पहली पीढ़ी से प्राप्त पौधों का उन्होंने फिर आपस में सेल्फिंग कराया और पाया कि दूसरी पीढ़ी F₂ में सभी पौधों का समलक्षणी (फीनोटाइप) अनुपात 3:1 था। इस प्रकार के अनुपात को एकसंकर अनुपात भी कहते हैं। इनमें 3 लंबे पौधों में 1 शुद्ध लंबा और 2 मिश्रित या संकर लंबे थे, जबकि एक शुद्ध बौना था।

F₂ पीढी के पौधों का जीनोटाइप अनुपात = 1 TT : 2 Tt : 1 tt = 1 : 2 : 1 प्राप्त होता है।
TT : Tt : tt के 1/4 : 1/2 : 1/4 अनुपात को गणित के द्विनामी पद (ax + by)² में व्यक्त किया जा सकता है। जिसका विस्तारित रूप
(1/2 T + 1/2 t)² = (1/2 T + 1/2 t) x (1/2 T + 1/2 t) = 1/4 TT + 1/2 Tt + 1/4 tt
जहाँ T तथा t gene वाले gametes 1/2 की समान आवृत्ति में रहते है।
मेंडल के एकसंकर क्रॉस के परिणाम इस प्रकार है—
यदि हम F₂ के पौधों से तीसरी पीढ़ी या F₃ प्राप्त करें तो देखेंगे कि Pure लंबे पौधे सदैव ही लंबे पौधे बनाते हैं तथा Pure बौने पौधे से हमेशा बौने पौधे ही प्राप्त होते हैं, परंतु यदि मिश्रित लंबे पौधों का क्रॉस कराया जाए तो F₂ पीढी की भांति लंबे तथा बौने पौधों का समलक्षणी अनुपात (Phenotypic ratio) 3:1 होगा।
द्विसंकर क्रॉस (Dihybrid cross) :-
जब दो पौधों के बीच दो विपरीत जोड़े के लक्षणों की वंशागति होती है तो इसे द्विसंकर क्रॉस करते हैं। मेंडल द्विसंकर क्रॉस के लिए बीज के आकार ( गोला या झुरीॅदार ) एवं रंग ( पीला या हरा ) का चयन किया। उन्होंने गोल और पीले ( round and yellow ) बीज वाले समयुग्मजी पौधे को झुरीॅदार और हरे ( wrinkled and green ) बीज वाले समयुग्मजी मटर के पौधे से क्रॉस कराया। इस क्रॉस से बने सभी F₁ पौधे पीले गोल बीज वाले थे।
F₁ पीढी के पौधों के बीच संकरण से उत्पन्न F₂ पीढी में निम्नलिखित संयोजन वाले पौधे उत्पन्न हुए — पीले तथा गोल बीज — 9, पीले तथा झनरीॅदार बीज — 3, हरे तथा गोल बीज — 3, एवं हरे तथा झनरीॅदार बीज — 1
चुँकि पीला रंग हरे रंग पर और गोल आकार झुरीॅदार आकार पर प्रभावी था,
अत: F₂ पीढी से प्राप्त फिनोटाइप अनुपात = 9 : 3 : 3 : 1 तथा जिनोटाइप अनुपात = 1 : 2 : 2 : 4 : 1 : 2 : 1 : 2 : 1
मेंडल के द्विसंकर क्रॉस के परिणाम इस प्रकार है —

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मेंडल का वंशागति नियम या आनुवंशिकता के नियम (Law of Heredity) :-
एकसंकर क्रॉस के आधार पर वंशागति के दो सामान्य नियम हैं।
1. प्रभाविता का नियम (Law of dominance) :-
इस नियम के अनुसार जब दो विपरीत एलील किसी जीव में एक साथ आते हैं, तब उनमें से केवल एक बाहरी रुप से दिखाई पड़ता है और दूसरा दबा हुआ रहता है। दिखाई देने वाले लक्षण को प्रभावी (dominant) एवं नहीं दिखाई देने वाले लक्षण को अप्रभावी (recessive) कहते हैं। यह आनुवंशिकता का प्रथम नियम कहलाता है।
मेंडल के प्रयोग में जब Pure लंबे TT पौधे का Pure बौने (tt) पौधे से क्रॉस कराया गया तो प्रथम पीढ़ी में सभी पौधे विषमयुग्मजी लंबे थे। इसमें दोनों विपरीत एलील (T एवं t) मौजुद थे।इस प्रकार प्रथम पीढ़ी में केवल एक एलील, जिसे प्रभावी कहते हैं दिखाई देता है जबकि दूसरी एलील जो अप्रभावी होता है, बाहरी रुप से दिखाई नहीं पड़ता है।
2. पृथक्करण या विसंयोजन का नियम (Law of Segregation) :-
पृथकरण के नियम के अनुसार जब विपरीत लक्षण के जोड़े को क्रॉस कराया जाता है तो युग्मक बनते समय एक जोड़ी के एलील एक – दूसरे से अलग हो जाते हैं। फलस्वरूप प्रत्येक युग्मक में दो में से केवल एक एलील रहता है, यह युग्मक अपने में शुद्ध होता है। युग्मकों के निषेचन से प्रत्येक लक्षण के दोनों एलील पुनः जोड़ी बना लेते हैं। कोई युग्मक किसी एक लक्षण के लिए बिल्कुल शुद्ध होता है, अतः इस नियम को युग्मकों की शुद्धता का नियम भी कहते हैं। यह वंशागति का दूसरा नियम कहलाता है।
मेंडल ने F₁ पीढी के पौधों में स्वपरागण करवाकर F₂ पीढी के पौधों का जब अध्ययन किया तो पाया कि 4 संभावित पौधों में से 3 पौधों में प्रभावी एवं 1 पौधे में अप्रभावी लक्षण दिखाई दिए। इससे पता चलता है कि F₁ पीढ़ी में पाए जानेवाले प्रभावी और अप्रभावी दोनों लक्षण अलग होकर F₂ पीढी में दिखाई देते हैं।

द्विसंकर क्रॉस के आधार पर वंशागति का तीसरा नियम :-
4. स्वतंत्र संकलन या स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of independent assortment) :
जब किसी संकर (hybrid) में लक्षणों के दो विपरित जोड़े लिए जाते है तो किसी एक जोड़ा लक्षण का विसंयोजन दूसरे जोड़े से स्वतंत्र होता है, जिसे स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम कहते है।
इसमें दोनों जोड़े के लक्षण स्वतंत्र रूप से प्रकट होते है तथा एक दूसरे पर अपना प्रभाव नहीं डालते हैं।
जैसे – RrYy के पौधों में अर्ध्दसूत्री विभाजन के दौरान genes के दो जोड़ों के स्वतंत्र विसंयोजन से युग्मकों के चार प्रकार के जिनोटाइप बनते हैं – RY, Ry, rY तथा ry जिन्हे पनेट वर्ग के दोनों ओर लिख कर द्वितीय पीढी प्राप्त करते हैं।

आनुवंशिकता या वंशागति का गुणसूत्रीय सिद्धांत (Chromosomal theory of heredity) :-
क्रोमोसोम के बारे में जानकारी होने के बाद वाल्टर सटव एवं थियोडोर बोवेरी ने सिद्ध किया कि क्रोमोसोम का व्यवहार जीन जैसा ही होता है। समसूत्री और अर्धसूत्री कोशिका विभाजन में क्रोमोसोम के व्यवहार का अध्ययन करने पर इसे आसानी से समझा जा सकता है।
- मेंडल के नियमों को सटन एवं बोवेरी ने क्रोमोसोम की गतिविधि से समझाया। जीन के समान क्रोमोसोम भी युग्म के रूप में रहते है। एक जीन के दोनों एलील समजात गुणसूत्रों के समजात स्थान पर अवस्थित रहते हैं। अपने तर्क में सटन एवं बोवेरी ने कहा कि क्रोमोसोम के जोड़े का अलग होना अपने में मौजूद जीन या कारको के विसंयोजन का कारण है।इस प्रकार क्रोमोसोम के विसंयोजन के ज्ञान को मेंडल के सिद्धांत के साथ मिलकर आनुवंशिकता का क्रोमोसोम सिद्धांत प्रतिपादित किया गया।
- थॉमस हंट मॉर्गन ने अपने साथियों के साथ फ्रूटफ्लाई ड्रोसोफिला मेलैनोगैस्टर पर अपने खोज से आनुवंशिकता के क्रोमोसोम सिद्धांत को प्रयोग द्वारा सत्यापित किया। फल पर लगने वाली इन मक्खियों को आसानी से प्रयोगशाला में कृत्रिम माध्यमों में विकसित किया जा सकता है। अपना जीवन चक्र ये दो सप्ताह में पूरा कर लेती है एवं एक बार में जनन के बाद विशाल संख्या में संतति मक्खियों को पैदा करती हैं। इसमें नर एवं मादा की पहचान सहजता से की जा सकती है। इसके साथ-साथ इनमे आनुवंशिक विविधताओं के भिन्न-भिन्न प्रकार पाए जाते हैं। सूक्ष्मदर्शी की कम क्षमता में इसका अध्ययन आसानी से किया जा सकता है। इन्हीं सब फायदों के चलते फ्रूटफ्लाई को आनुवंशिक प्रयोग के लिए बहुत ही उपयुक्त पाया गया है।