मेंडेलीय विकार क्या है। हिमोफिलिया क्या है। वर्णांधता क्या है। तथा सिकल-सेल एनेमिया क्या होता है।

मेंडेलीय विकार (Mendelian disorders):-

एकल जीन के उत्परिवर्तन से मेंडेलीय विकार निर्धारित होता हैं। ऐसे विकार की वंशागति मेंडल के सिध्दांत के अनुसार होती है। इसे वंशावली विश्लेषण द्वारा खोजा जा सकता है।

जैसे – हीमोफीलिया, वर्णांधता, सिकल-सेल एनीमिया, फिनाइलकिटोन्यूरिया, सिस्टिक फाइब्रोसिस, थैलेसिमिया आदि मेंडेलीय विकार है।

हिमोफिलिया (Haemophilia) :-

यह एक लिंग सहलग्न अप्रभावी लक्षण (sex linked recessive trait) वाले मेंडेलीय विकार हैं। ऐसे रोग के कारण मनुष्य में रुधिर जमने की क्षमता खत्म हो जाती है। शरीर के किसी भाग के कटने से रुधिर का प्रवाह अविरल होता रहता है। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति में रुधिर को जमाने वाले प्रोटीन का संश्लेषण नहीं हो पाता है। इससे संबंधित जीन X गुणसूत्र पर पाए जाते हैं।

इसमें प्रभाव रहित वाहक स्त्री (unaffected carrier female) जो विषमयुग्मजी (heterozygous) होती है से नर संतति (male progenies) में रोग का संचार होता है।

ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के वंशावली में अनेक वंशज हीमोफिलिया ग्रस्त थे, जिनमें रानी हीमोफिलिया वाहक (carrier) थी।

  • अगर सामान्य पुरुष (normal male) की शादी हिमोफीलिया रोग के वाहक स्त्री (carrier women) से होती है तो इन दोनों से उत्पन्न मादा संतानों में 50% सामान्य एवं 50% हीमोफीलिया रोग के वाहक होंगे जबकि नर संतानों में 50% सामान्य एवं 50% हिमोफीलिया रोग से ग्रस्त होंगे।
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चित्र :- हिमोफिलिया रोग की वंशागती।
  • अगर किसी सामान्य स्त्री की शादी हिमोफिलिक पुरुष के साथ होता है तो प्रथम पीढ़ी में सभी पुत्रियां सामान्य परंतु वाहक (carrier) होगी तथा सभी पुत्र सामान्य होंगे। इन दोनों परिस्थितियों में मादा संताने रोग ग्रस्त नहीं होती है क्योंकि दो X गुणसूत्र में एक हमेशा सामान्य एवं प्रभावी रहता है।

वर्णांधता (Colour blindness) :-

ऐसे मेंडेलीय विकार से ग्रस्त रोगी लाल एवं हरे रंग की पहचान नहीं कर सकते हैं। इस रोग से संबंधित जीन X गुणसूत्र पर पाया जाता है एवं सामान्य दृष्टि वाले ऐलील के समक्ष यह अप्रभावी (recessive) होता है।

  • यह X – क्रोमोसोम के विशेष जीन में उत्परिवर्तन के कारण होता है। यह लगभग 8% नर तथा 0.4% मादा में होता है।
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चित्र :- मनुष्य में वर्णांधता की वंशागति।
  • जब किसी समान्य स्त्री (normal female) की शादी एक वर्णांध दृष्टि वाले पुरुष (colour blind male) के साथ होती है तो प्रथम पीढ़ी में सभी पुत्रियां सामान्य दृष्टि वाली किंतु वाहक (carrier) होगी एवं सभी पुत्र समान्य होंगे। ऐसा इसलिए होता है कि सभी पुत्रों को सामान्य दृष्टि वाले माता से X प्रभावी जीन प्राप्त होता है।
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चित्र :- एक सामान्य दृष्टि वाली वाहक स्त्री एवं एक वर्णांध पुरुष के बीच संकरण की वंशागति
  • जब सामान्य दृष्टि किंतु वाहक स्त्री (carrier female) की शादी वर्णांध पुरुष के साथ होता है तो प्रथम पीढ़ी के सभी पुत्रों मे 50% सामान्य दृष्टि वाले तथा 50% वर्णांध (colour blind) जबकि सभी पुत्रियों में 50% वर्णांध वाहक (colour blind carrier) तथा 50% वर्णांध (colour blind) होती है।

सिकल सेल एनेमिया या दात्र कोशिका अरक्तता :-

यह एक अलिंग सहलग्न अप्रभावी (autosomal linked recessive) लक्षण वाले मेंडेलीय विकार जिसमें मानव रुधिर के लाल रुधिर कोशिकाओं (RBC) के आकार में परिवर्तन हो जाता है। सामान्य RBC कण जो biconcave disc की तरह होते हैं, रूपांतरित होकर दात्राकार या हंसिए की तरह (sickle shaped) हो जाते हैं। इससे दात्र कोशिका में अरक्तता उत्पन्न हो जाती है।

  • यह रोग जनकों से संतति में तभी स्थानांतरित होता है जबकि दोनों जनक इस रोग के लिए जिम्मेवार जीन के वाहक होते हैं।
  • रोग का लक्षण समयुग्मजी (homozygous) स्थिति में ही परिलक्षित होता है, विषमयुग्मजी (heterozygous) स्थिति में यह रोग दिखाई नहीं पड़ता है किंतु यह रोग वाहक होता हैं।
  • इससे संबंधित जीन में जब उत्परिवर्तन होता है तो इस रोग के संतति में स्थानांतरित होने की संभावना 50% रहती है। इस रोग के होने का मुख्य कारण हीमोग्लोबिन अणु के एक एमिनो अम्ल (ग्लुटामिक अम्ल) का वैलिन द्वारा प्रतिस्थापित होना है। यह बीटा ग्लोबिन जीन के छठे कोडन GAG का GUG में उत्परिवर्तन होने से होता है।

फिनाइलकीटोन्यूरिया :-

यह भी एक अलिंग सहलग्न अप्रभावी लक्षण वालेे मेंडेलीय विकार है। इस जन्मजात उपापचय रोग में मनुष्य के शरीर में फिनाइलएलेनिन एमिनो अम्ल इकट्ठा होता रहता है। मानव वृक्क द्वारा इसका कम अवशोषण होने के कारण ये मूत्र के साथ उत्सर्जित होते रहते हैं। शरीर में इसके जमा होने से मानसिक दुर्बलता उत्पन्न होती है।

फिनाइलएलेनिन के शरीर में एकत्र होने का मुख्य कारण इसको tyrosine एमिनो अम्ल में रूपांतरित करने वाले एंजाइम से संबंधित जीन में उत्परिवर्तन होना है।

थैलेसीमिया (Thalassemia) :-

यह अलिंग सहलग्न अप्रभावी रुधिर संबंधी मेंडेलीय विकार है। जनकों से संतति में तभी transmit होता है, जब दोनों जनक, जीन के लिए unaffected carriers (heterozygous) होते हैं।

  • यह defect, mutation या deletion के कारण होता है। इसमें haemoglobin का निर्माण करने वाले globin chain (अल्फा या बीटा चैन) में से किसी एक का संशलेषण कम हो जाता है। इससे असामान्य हीमोग्लोबिन अणु का निर्माण होता है जिससे anaemia की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

यह दो प्रकार का होता है –

1. अल्फा थैलेसीमिया : – इसमें alpha globin chain का बनना प्रभावित होता है। यह प्रत्येक जनक के 16 वे गुणसूत्र पर स्थित दो सहलग्न जीन HBA1 तथा HBA2 द्वारा नियंत्रित होता है।

    2. बीटा थैलेसीमिया :- इसमें beta globin chain का बनना प्रभावित होता है। यह प्रत्येक जनक के 11 वे गुणसूत्र पर स्थित एकल जीन HBB द्वारा नियंत्रित होता है।

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