मेंडल की वंशागति नियमों के अपवाद – अपूर्ण प्रभाविता, सहप्रभाविता, बहुविकल्पता तथा सहलग्नता का वर्णन।

मेंडल की वंशागति नियमों के अपवाद (Exceptions to Mendel’s Law of Inheritance) :-

  1. अपूर्ण प्रभाविता (Incomplete dominance)
  2. सहप्रभाविता (Codominance)
  3. बहुविकल्पता (Multiple allelism)
  4. सहलग्नता (Linkage)

अपूर्ण प्रभाविता (Incomplete dominance) :-

जब विपरीत लक्षणों के जोड़े में एक लक्षण दूसरे लक्षण पर पूर्ण प्रभावी न होकर एक – दूसरे पर अपूर्ण रूप से प्रभावी हो जाते हैं अर्थात दोनों अपने-अपने लक्षण को आंशिक रूप से प्रकट करते हैं तो इससे अपूर्ण प्रभाविता करते हैं।

जैसे – गुलअब्बास (Mirabilis jalapa) / स्नेपड्रैगन या एंटीराइगन के लाल फूल और सफेद फूल वाले पौधों के साथ क्रॉस होता है तब लाल रंग सफेद पर प्रभावी न होकर दोनो का मिश्रित रंग वाले गुलाबी (Pink) फूल F₁ पीढी में प्राप्त होते है।

पुन: F₁ पीढी मे स्वपरागण (selfing) होने पर F₂ पीढी प्राप्त होता है।

अपूर्ण प्रभाविता में फिनोटाइप तथा जीनोटाइप अनुपात एक समान (1:2:1) होता हैं।

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इसका खोज कार्ल कोरेन्स (1903) ने किया था।

अपूर्ण प्रभाविता का कारण :-

जीन जिसके दो ऐलील रूप होते हैं में एंजाइम बनाने की भी सूचना होती है। अगर recessive allele किसी भी एंजाइम का उत्पादन नहीं करता है या कार्य अक्षम एंजाइम का उत्पादन करता है, तो इसके फीनोटाइप प्रभावित हो जाता है तथा अपने लक्षण को भी प्रकट कर देता है।

सहप्रभाविता (Codominance) :-

जब किसी जीव के दो जनकों में एलील जोड़े के बीच क्रॉस होता है तब F₁ पीढी में उनके एक लक्षण दूसरे लक्षण पर प्रभावी न होकर दोनों लक्षण एक साथ पूर्ण रूप से संतान में प्रकट हो जाते हैं तब उसे सहप्रभाविता कहते है, जो मेंडल की वंशागति नियमों के अपवाद है।

जैसे – जब लाल त्वचा वाले मवेशी का संकरण सफेद त्वचा वाले मवेशी से होता है तब F₁ पीढी के सभी मवेशी चितकबरा (Roan) प्राप्त होते हैं जिसके त्वचा पर लाल तथा सफेद दोनों रंग एक साथ प्राप्त होते हैं।

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सहप्रभाविता में फीनोटाइप अनुपात तथा जीनोटाइप अनुपात एक समान (1:2:1) होता है।

रुधिर वर्ग (blood group) AB में दोनों ऐलील सहप्रभावी होते हैं।

बहुविकल्पता (Multiple allelism) :-

जब किसी एक लक्षण के लिए 2 से अधिक वैकल्पिक ऐलील जिम्मेवार हो तो ऐसे ऐलील को बहुविकल्पी एलील तथा इस प्रकार की घटना को बहूविकल्पत्ता कहते हैं।

जैसे – खरगोश की त्वचा के रंग के लिए 4 अथवा अधिक ऐलील तथा मानव रुधिर वर्ग के निर्धारण के लिए 3 प्रकार के ऐलील भाग लेते हैं।

मानव रुधिर वर्ग (Human blood group) का निर्धारण :-

मानव में ABO blood group को निर्धारित (determine) करने वाली विभिन्न प्रकार के RBCs I जीन के द्वारा नियंत्रित होता है। जीन I के 3 ऐलील होते हैं – IA, IB तथा i, ऐलील i शर्करा (sugar) का उत्पादन नहीं करता है जबकि शेष दोनों विभिन्न प्रकार के शर्करा उत्पादन करते हैं।

  • प्रत्येक व्यक्ति में तीनों alleles में से कोई दो alleles होते हैं। IA तथा IB ऐलील i के ऊपर पूर्ण रूप से प्रभावी होते हैं क्योंकि i कोई शर्करा नहीं बनता हैं
  • जब किसी RBC में IA तथा IB दोनों एक साथ होते है, तब ये अपने – अपने शर्करा को प्रदर्शित कर देते हैं। यह घटना सहप्रभाविता कहलाती है।
  • तीन प्रकार के ऐलील होने के कारण ABO blood group के कुल 6 जीनोटाइप तथा 4 फीनोटाइप बनते हैं।
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चित्र :-

कार्ल लैंडस्टेनर नामक वैज्ञानिक ने सर्वप्रथम यह बताया कि मानव RBC की कोशिका झिल्ली पर दो प्रकार के एंटीजेंस या शर्करा (sugar) पाए जाते हैं जबकि इनके अतिरिक्त रक्त प्लाज्मा में दो प्रकार के एंटीबॉडी पाए जाते हैं।

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  • ब्लड ग्रुप AB को सर्व प्राप्तकर्ता (Universal recipient) कहते हैं क्योंकि इसमें दोनों एंटीबॉडीज अनुपस्थित होते हैं जिसके कारण ऐसे व्यक्ति सभी प्रकार के ब्लड ग्रुप वाले ब्लड प्राप्त कर सकते हैं। किंतु इसमें एंटीजन A तथा एंटीजन B उपस्थित होने के कारण ब्लड ग्रुप A, B तथा O को अपना ब्लड नहीं दे सकते हैं क्योंकि यह ब्लड शरीर में थक्का बना देगा।
  • ब्लड ग्रुप O को सर्वदाता (Universal donor) कहते हैं क्योंकि इसमें एंटीजन / शर्करा अनुपस्थित रहते हैं।
  • ब्लड ग्रुप A वाले केवल A को तथा B वाले केवल B को अपना ब्लड डोनेट कर सकते हैं।

सहलग्नता (Linkage) :-

किसी एक ही गुणसूत्र पर उपस्थित वे जीन अथवा ऐलील जो अर्धसूत्री कोशिका विभाजन के समय एक दूसरे से अलग हुए बिना उसी स्थिति में पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होते रहते हैं, उसे सहलग्न जीन कहते हैं तथा ऐसी घटना को सहलग्नता कहते हैं।

यह मेंडल की वंशागति नियमों के अपवाद है। सर्वप्रथम सहलग्नता का खोज R. C. Punett, E. R. Squders तथा William Bateson के द्वारा किया गया था।

ड्रोसोफिला में सहलग्नता (Linkage in Drosophila) :-

T H Morgan नामक वैज्ञानिक ने सहलग्नता की घटना का अध्ययन फल पर बैठने वाले मक्खि ड्रोसॉफिला पर किया क्योंकि प्रयोगशाला में इसका उत्पादन आसानी से होता है। इनमे नर तथा मादा की पहचान आसानी से हो जाते हैं आनुवंशिकी विविधता भी अनेक होते हैं।

Morgan ने जब सफेद आंख – पीला शरीर वाले मादा ड्रोसॉफिला का द्विसंकर क्रॉस लाल आंख – भुरा शरीर वाले नर ड्रोसॉफिला से कराया तो F1 के बाद F2 पीढी में इनके संतानों का फिनोटाइप अनुपात 9:3:3:1 प्राप्त नहीं हुआ जो मेंडल की वंशागति नियमों के अपवाद है

Morgan ने सफेद आँख वाला मादा तथा लाल आँख वाला नर Drosophila के बिच एकसंकर क्राॅस भी कराया जिसमे फिनोटाइप अनुपात 3:1 न होकर कुछ अलग प्राप्त हुआ।

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चित्र :-

लिंग सहलग्न वंशागति (Sex-linked Inheritance) :-

जब लक्षणों के जीन लिंग गुणसूत्र पर पाए जाते हैं तो उनकी वंशागति को लिंग सहलग्न वंशागति कहते हैं।

जबकि मेंडेलियन वंशागति में लक्षणों के जीन अलिंग गुणसूत्र (Autosome) में ही पाए जाते हैं।

लिंग सहलग्न जीन तीन प्रकार के होते हैं –

1. X – सहलग्न जीन :-

जब सहलग्न जीन X- गुणसूत्र पर पाए जाते हैं तो उसे X- सहलग्न जीन कहते हैं, इसके वंशागति को x- सहलग्न वंशागति कहते हैं । जैसे – हीमोफीलिया, वर्णांधता।

2. Y – सहलग्न जीन :-

जब सहलग्न जीन Y- गुणसूत्र पर पाए जाते हैं तो उसे Y- सहलग्न जीन कहते हैं, इसके वंशागति को Y- सहलग्न वंशागति कहते हैं। जैसे – कानो मे बाल की बहुलता, स्केली त्वचा का होना।

3. अपूर्ण लिंग सहलग्न जीन :-

कुछ जीन X तथा Y दोनों लिंग गुणसूत्र पर पाए जाते हैं तब उसे अपूर्ण लिंग सहलग्न जीन कहते हैं।

सहलग्नता वर्ग (Linkage group) :-

सहलग्नता वर्ग, एक ही गुणसूत्र पर मौजूद उन जीनों का समूह होता है जो एक साथ वंशानुगत होते हैं।

  • सहलग्नता वर्ग, गुणसूत्र के रैखिक क्रम में होता है तथा इसे अगुणित (haploid) गुणसूत्र की संख्या से निरूपित करते हैं।

जैसे – मनुष्य में 23 (n = 23), खाने योग्य मटर में 7 (n = 7), मक्के में 10 (n = 10), ड्रोसोफिला मिलेनोगेस्टर में 4 (n = 4) सहलग्नता वर्ग होते हैं।

सहलग्नता के प्रकार :-

दो प्रकार – 1. पूर्ण सहलग्नता :- जब दो जीन एक ही गुणसूत्र पर बहुत पास-पास होते हैं, तो वे हमेशा एक साथ वंशागति करते हैं, यानी उनके अलग होने की संभावना बहुत कम होती है। जैसे – ड्रोसोफिला (Drosophila) में शरीर के रंग और पंखों के आकार को नियंत्रित करने वाले जीन पूर्ण सहलग्नता दिखाते हैं।

2. अपूर्ण सहलग्नता :- जब दो जीन एक ही गुणसूत्र पर दूर-दूर होते हैं, तो उनके अलग होने की संभावना रहती है, क्योंकि मियोसिस के दौरान क्रॉसिंग ओवर (Crossing Over) हो सकता है। जैसे – मक्के में भ्रूणपोष और बीज के आकार को नियंत्रित करने वाले जीन अपूर्ण सहलग्नता दिखाते हैं।

सहलग्नता का महत्व :-

1. सहलग्नता के अध्ययन से गुणसूत्र पर स्थित जीन की स्थिति का पता चलता है।

2. इसका उपयोग पौधों और जानवरों में नई किस्मों के विकास में भी किया जा सकता है।

3. इसका उपयोग बीमारियों के अध्ययन में भी किया जा सकता है, क्योंकि कुछ बीमारियाँ जीन के सहलग्नता के कारण होती हैं।

4. इसके कारण, संकरण के दौरान जनक के लक्षण एक साथ रहते हैं, जिससे संकर (hybrid) में मूलजनक के लक्षण दिखाई देते हैं।

5. कुछ विशेष जीन, जिन्हें मार्कर जीन कहते हैं, सहलग्न होते हैं, जो गुणात्मक और मात्रात्मक लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।

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