प्राणियों में अनुकूलन (Adaptation in animals) :-
प्राकृतिक वातावरण में प्राणियों को सफलता पूर्वक जीवन – यापन करने के लिए उनके शरीर की संरचना तथा कार्यिकी में होने वाले विशेष परिवर्तन को प्राणियों में अनुकूलन करते हैं।
मरुस्थलीय, सामान्य स्थलीय, जलीय, धुर्वीय क्षेत्रों आदि आवासों के प्राणियों में अनुकूलन भिन्न – भिन्न होते हैं।
मरुस्थलीय प्राणियों में अनुकूलन (Adaptation in desert animals) :-
मरुस्थल के छोटे जीव जैसे – चूहा, सांप, केकड़ा दिन के समय बालू में बनाए गए सुरंग में रहते हैं तथा रात को जब तापक्रम घट जाता है तब यह भोजन की खोज में बिल से बाहर निकलते हैं।
- कुछ मरुस्थलीय जंतु अपने शरीर के मेटाबॉलिज्म से उत्पन्न जल का उपयोग करते हैं। जैसे – कंगारू चूहा (Kangaroo rat) जो उतरी अमेरिका के मरुस्थल में पाए जाते हैं।
ऊंट में अनुकूलन (Adaptation in Camel) :-
- इसके खूर की निचली सतह चौड़ी और गद्देदार होती है।
- इसके पीठ पर संचित भोजन के रूप में वसा एकत्रित रहता है जिसे हंप (hump) कहते हैं। भोजन नहीं मिलने पर इस वसा का उपयोग ऊर्जा के लिए होता है।
- जल उपलब्ध होने पर यह एक बार में लगभग 50 लीटर जल पी लेता है जो शरीर की विभिन्न भागों में शीघ्र वितरित हो जाता है।
- उत्सर्जन द्वारा इसके शरीर से बहुत कम मात्रा में जल बाहर निकलता है। यह प्रायः सुखा मल का त्याग करता है।
जलीय प्राणियों में अनुकूलन (Adaptation in aquatic animals) :-
जलीय स्तनधारी जैसे – सील जो ध्रुवीय समुद्र में पाए जाते हैं, उनकी त्वचा के नीचे वसा की एक मोटी परत रहती है जो ऊष्मारोधी (insulator ) का काम करती हैं।
- मछलियां में श्वसन के लिए गिल्स मौजूद होता है, जिसके द्वारा जल में घुलित ऑक्सिजन का उपयोग होता है।
- हाइड्रा, ऑक्टोपस आदि में लंबे टेंटेकल्स पाए जाते हैं जो इन्हें शिकार को पकड़ने तथा तैरने में मदद करता है।
सामान्य स्थलीय प्राणियों में अनुकूलन (Adaptation in Terrestrial animals) :-
स्थलीय प्राणियों में गति के लिए पैर होते हैं।
- बंदरों में लंबी पूछ पाई जाती है जो इन्हें पेड़ पर चढ़ने तथा शरीर को संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है।
- मांसाहारी जंतुओं जैसे – बाघ, शेर,चिता आदि में रदनक दांत अधिक विकसित होते हैं ,जो शिकार को चीर – फ़ाड़ करने में मदद करते हैं।
- ठंडे प्रदेश में मिलने वाले स्तनधारियों के कान और पैर सामान्यतः छोटे होते हैं जिससे ऊष्मा की हानि कम होती है। इसे एलेन का नियम कहते हैं।
- शाकाहारी जंतुओं जैसे – गाय, भैंस, बकरी, हिरन आदि में भोजन को चबाने के लिए कृतनक दांत विकसित होते हैं।