डाउन्स सिंड्रोम (Down’s Syndrome) तथा क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम (Klinfelter’s Syndrome) क्या होते है?

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डाउन्स सिंड्रोम (Down’s Syndrome) :-

जब किसी मनुष्य के 21वें जोड़े गुणसूत्र में एक गुणसूत्र की वृद्धि हो जाती है तब उस मनुष्य के अंदर डाउन्स सिंड्रोम नामक रोग उत्पन्न हो जाती है।

  • ऐसे गुणसूत्रीय विकार बच्चों में उत्पन्न होती है। इस प्रकार यह ट्राइसोमी (2n+1) का उदाहरण भी है।
  • इस प्रकार के रोगी की प्रत्येक कोशिका में 47 गुणसूत्र पाए जाते हैं।
  • लैंगडन डाउन ने 1866 में इस विकार की खोज की थी, इसलिए इसे डाउन्स सिंड्रोम कहते हैं।
  • इस रोग से ग्रसित बच्चे देखने में मंगोलियन के सामान लगते हैं, इसलिए इसे मंगोलियन संलक्षण भी कहते हैं।
  • ऐसे रोगी छोटे कद के होते हैं, इसके सिर गोल, जीभ मोटा एवं मुंह आंशिक तौर पर खुला रहता है।
  • ऐसे रोगी मंदबुद्धि भी होते है तथा श्वास संबंधी संक्रमण इनमें आसानी से हो जाता है।
  • इनकी हथेली असामान्य एवं उनके ह्रदय में दोष रहता है।
  • सामान्यतः ऐसे बच्चे 8 से 12 वर्ष की उम्र तक ही जीवित रह पाते हैं।
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चित्र :- डाउन्स सिंड्रोम।

क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम (Klinfelter’s Syndrome) :-

  • यह भी ट्राइसोमी का एक उदाहरण है।
  • इसमें लिंग गुणसूत्र “X” की एक अतिरिक्त प्रतिलिपि के मौजूद रहने के चलते मानव के प्रत्येक कोशिका में 47 गुणसूत्र (44+XXY) हो जाता है।
  • यह लक्षण पुरुषों में पाया जाता है जो देखने में सामान्य लगते हैं, लेकिन इनमें मादा लक्षण परिलक्षित होते हैं। जैसे :– स्त्री की भांति वक्ष की वृद्धि।
  • ऐसे पुरुष प्रायः बांझ होते हैं, क्योंकि इनमें शुक्राणु बहुत कम बन पाते हैं।
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चित्र :- क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम।

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