क्रॉसिंग ओवर क्या है! क्रॉसिंग ओवर का महत्व क्या है! (Crossing Over and its Importance) :-

क्राॅसिंग ओवर

क्राॅसिंग ओवर (Crossing Over) :-

वैसी प्रक्रिया जिसमें एक गुणसूत्र पर स्थित जीन्स का एक समूह समजात गुणसूत्र पर स्थित समान जीनों के समूह द्वारा स्थान परिवर्तन कर लेता है, उसे विनिमय या क्रॉसिंग ओवर कहते हैं।

  • एक गुणसूत्र में उपस्थित सभी जीन्स सामान्यत: रेखीय क्रम में स्थित रहते हैं एवं सहलग्न होते है। ऐसे जीनों का पुनर्योजन (Recombination) जिस क्रिया द्वारा होता है उसे विनिमय कहते हैं।
  • माॅर्गन एवं कैसल ने 1912 में क्रॉसिंग ओवर शब्द का नामकरण किया।
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चित्र :– विनिमय या क्रॉसिंग ओवर की क्रियाविधि।
  • क्राॅसिंग ओवर का आरंभ अर्धसूत्री विभाजन के प्रोफेज – I की पैकीटीन अवस्था में होता है।
  • इस अवस्था में समजात गुणसूत्र, युग्मों (pairs) में रहते हैं तथा प्रत्येक समजात गुणसूत्र दो क्रोमेटिड्स में बट जाते हैं।
  • इस अवस्था में बीच के दो असमजात क्रोमेटिड्स, क्रॉसिंग ओवर में भाग लेते हैं।
  • ये दोनों जिस स्थान पर एक दूसरे को क्रॉस करते हैं उस स्थान को काइज्मा कहते हैं।
  • काइज्मा वाले स्थान से क्रोमेटिड्स टूट जाते हैं फिर दोनों एक दूसरे पर विनिमय या क्रॉस कर लेते हैं जिससे समजात गुणसूत्रों के कुछ जीन्स आदान-प्रदान कर एक दूसरे पर हो जाते है।
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चित्र :– काइज्मा
  • जहां पर क्रोमेटिड्स क्रॉस करते हैं उसे क्रॉस ओवर का स्थान कहते हैं। इसी के कारण काइज्मा उत्पन्न होते हैं।
  • काइज्मा के स्थान पर क्रोमेटिड्स टूट जाते हैं एवं बाद में वे इस प्रकार जुड़ते हैं कि उनके समजात खंड का विनिमय हो जाता है।
  • इस प्रकार के विनिमय से उत्पन्न युग्मक (Gametes) चार [दो जनक की तरह एवं दो पुन: संयोजन (Recombination) वाले] प्रकार के होते हैं।
  • पुन: संयोजन से जीवों के विकास की क्रिया में सहायता मिलती है तथा नई जातियाँ बनती है।

क्रॉसिंग ओवर का महत्व (Importance of Crossing Over) :-

  1. इस क्रिया के कारण माता-पिता के गुण उनके संतानों में जाते हैं।
  2. इस क्रिया की पुनरावृति से गुणसूत्र का मानचित्र तैयार किया जाता है।
  3. इसके कारण जीवों में विविधता उत्पन्न होती है।

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