कृषि में जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका (Biotechnological applications in Agriculture) :-
कृषि में जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका अति महत्त्वपूर्ण है। कोशिका, उत्तक तथा अंग संवर्धन की प्रौद्योगिकी ने रोगमुक्त पौधे, प्रतिरोधी किस्में, पोषक तत्वों में सुधार, सूखा और लवणरोधी किस्मों के विकास तथा सूक्ष्म-प्रजनन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
जैव प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर उच्च पैदावार वाली किस्में, बायोफर्टिलाइजर, परालैंगिक संकरण द्वारा उपयोगी किस्में, दुर्लभ संकर, जीन का स्थानांतरण आदि शामिल है।
कृषि में जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका निम्नलिखित है :-
(1) रोगमुक्त पौधों का उत्पादन :-
- जो पौधे कायिक जनन द्वारा अपनी संख्या बढ़ाते हैं उनमें वाइरस तथा अन्य रोगाणु मातृ पौधे से बने अन्य पौधे में स्थानांतरित होते रहते हैं।
- जैसे :- आलू की पोटैटो लीफ रोल वाइरस से प्रभावित पौधे में आलू के ट्यूबर की पैदावार 95% तक घट जाती है।
- वाइरस मुक्त पौधें प्राप्त करने के लिए कृषि में जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका बढ़ जाती है।
- वाइरस मुक्त पौधों में प्रमुख है :- लहसुन, सोयाबीन, केला, तंबाकू, गन्ना, अदरक, आदि।
- रोगमुक्त पौधे प्राप्त करने के लिए मेरिस्टेम-टिप संवर्धन (Meristem-tip culture) का प्रयोग किया जाता है।
![कृषि में जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका का वर्णन करें। 2 organic agriculture](https://sciencevision.in/wp-content/uploads/2023/03/organic-agriculture.jpg)
(2) रोग प्रतिरोधी पौधों का उत्पादन :-
- कृषि में जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका रोग प्रतिरोधी पौधों के उत्पादन में भी है।
- उत्तक संवर्धन के व्यवहारिक उपयोग का एक अच्छा उदाहरण आलू में होने वाली दो प्रकार की बीमारियां है । पहली बीमारी “लेट ब्लाइट ऑफ पोटैटो” है जो फाइटोप्थोरा इन्फेंटंस से होता है और दूसरी बीमारी “अर्ली ब्लाइट ऑफ पोटैटो” है जो अल्टरनरिया सोलानी से होती है।
- ऊतक संवर्धन (Tissue culture) विधि का इस्तेमाल कर आलू के कैलस से सोमाक्लोन को छटनी कर रोग प्रतिरोधी पौधे प्राप्त करने में सफलता मिली है।
- मक्का में “साउदर्न कॉर्न-लीफ ब्लाइट” की प्रतिरोधी किस्में सोमाक्लोन से चयनित कर बनाई गई है।
(3) लवण तथा सूखा सहन करने वाली किस्मों का उत्पादन :-
- लवण सहन कर सकने वाले फसलों की किस्मों को जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से विकसित किया गया है।
- इनमें तंबाकू, टमाटर तथा धान्य फसलें प्रमुख है।
- टमाटर की फसल सामान्यतः ज्यादा नमक वाली मिट्टी में नहीं होती है।
- उत्तक संवर्धन कर टमाटर, चावल, तंबाकू में लवण सहन करने वाली किस्मों को विकसित किया गया है।
- टमाटर की एक प्रजाति लाइकोपर्सिकम माइनर समुद्री क्षेत्रों के किनारों पर नमक वाली मिट्टी में होती है।
- चावल की विकसित किस्मों में IR42, IR43, IR52 लवण सहन करनेवाली किस्में है।
- सूखा सहन करने वाली किस्में टमाटर, गेंहू आदि फसलों में बनाई गई है।
(4) जैविक खाद :-
- कुछ जीवाणु (जैसे :– राइजोबियम) वायुमंडल के नाइट्रोजन को मटर कुल के पौधे की जड़ों में स्थिर करते हैं।
- राइजोबियम में nif (nitrogen-fixing) gene पाया जाता है।
- जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से nif gene को ई कोलाई (E coli) तथा Klebsiella pneumoniae में स्थानांतरित कर इन जीवाणुओं के अंदर नाइट्रोजन स्थिर करने की क्षमता पैदा की गई हैं।
![कृषि में जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका का वर्णन करें। 3 41291973731 450f426675 z](https://sciencevision.in/wp-content/uploads/2023/03/41291973731_450f426675_z.jpg)
(5) कृत्रिम बीजों का उत्पादन :-
- कृत्रिम बीज या सिंथेटिक सीड “इन विट्रो कल्चर” में बने भ्रूण को एल्जिनेट में लपेटकर बनाए जाते हैं।
- मक्का, चावल, गाजर, सरसों, आलू, कपास आदि में कृत्रिम बीजों से पूर्ण विकसित पौधे प्राप्त किए जाते हैं।
(6) जर्मप्लाज्म भंडारण :-
- सामान्यतः पौधों की प्रजातियों का भंडारण बीजों द्वारा किया जाता है।
- इस विधि में समय के साथ बीजों की अंकुरण क्षमता में कमी, बीजों का रोगाणुओं तथा कीटाणुओं द्वारा खराब होने की संभावना बनी रहती है।
- उत्तक संवर्धन विधि से कैलस को कम तापमान (4 से 8 डिग्री सेल्सियस) या अति सूक्ष्म तापमान (-80 डिग्री सेल्सियस) या नाइट्रोजन (-190 डिग्री सेल्सियस) पर रखा जाता है।
![कृषि में जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका का वर्णन करें। 4 kuruk hndi 001 resz pagee](https://sciencevision.in/wp-content/uploads/2023/03/kuruk-hndi-001-resz-pagee-765x1024.gif)
Nice sir