आबादी की विशेषताएं (characteristics of population) :-
किसी स्थान पर एक जाति विशेष जीवों के आबादी की विशेषताएं कई बातों पर निर्भर करती हैं। जैसे – कुल आबादी का वितरण स्वरूप, प्रसरण, आयु संरचना, जन्म – दर , मृत्यु – दर आदि।
आबादी की विशेषताएं निम्नलिखित है –
1. आबादी का प्रसरण (population dispersal) :-
जब किसी एक स्थान से आबादी का कोई जीव या जीवों का समूह किसी दूसरे स्थान या क्षेत्र में चला जाता है तो उसे आबादी का प्रसारण होते हैं। इस क्रिया से नया क्षेत्र आबाद होता है तथा सघन आबादी वाले क्षेत्र की सघनता में कमी आती है।
आबादी के कई जीव पर्याप्त भोजन, उपयुक्त आवास, वातावरण की अनुकूलता, सुरक्षा आदि को देखते हुए अपना स्थान परिवर्तन कर लेते हैं।
किसी आबादी का प्रसरण तीन प्रकार के हो सकते हैं –
(a) आगमन (Immigration) :-
अपना मूल आवास छोड़कर जब कोई जीव या समूह किसी नए स्थान पर जाकर अपना आवास बना लेता है तो उसे आगमन कहते हैं। आगमन से किसी स्थान की आबादी में वृद्धि होती है जो अस्थाई या अस्थाई दोनों हो सकते हैं।
(b) बहिर्गमन (Emigration) :-
जब कोई जीव या समूह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपने मूल आवास को छोड़कर नए स्थान में चला जाता है तो इससे बहिर्गमन कहते हैं। इससे आबादी में कमी आती है। सामान्यतः बहिर्गमन स्थाई होता है।
(c) स्थानानंत्रण (Migration) :-
जब किसी खास कारण से कोई जीव अस्थाई तौर पर कहीं दूसरा जगह चला जाता है एवं कुछ समय बाद पुनः अपने मूल स्थान पर वापस आ जाता है तो इसे स्थानांतरण या आव्रजन कहते हैं। स्थानांतरण अस्थाई होता है। जैसे – साइबेरिया में कड़ाके की ठंड पड़ती है, उससे बचने के लिए वहां की पक्षियां भारत में चली आती है, क्योंकि यहां अपेक्षाकृत कम ठंड पड़ती है। ग्रीष्म मौसम आने से पहले पक्षियां फिर वापस चले जाते है।
2. आयु संरचना (age structure) :-
आयु संरचना आबादी की विशेषताएं हैं जिसके अंतर्गत अधिकांश आबादियों में व्यष्टियाँ अलग-अलग उम्र की होती है। हर आयु वर्ग में व्यष्टियों के अनुपात को उसे आबादी की आयु संरचना कहते हैं।
पारिस्थितिकी में आयु संरचना को तीन अवस्थाओं में विभाजित करते हैं –
(a) पूर्व प्रजनन काल (pre – reproductive age)
(b) प्रजनन काल (reproductive age)
(c) उत्तर प्रजनन काल (post – reproductive age)
मनुष्य में जीवन विस्तार की तीनों अवस्थाएं लगभग समान होती है। कुछ जीवों, जैसे बड़े जानवरों में पूर्व प्रजनन काल बहुत छोटा तथा उत्तर प्रजनन काल काफी लंबा होता है। इसके विपरीत बहुत से पौधे तथा जानवरों में पूर्व प्रजनन का लंबा होता है।
आयु पिरामिड (age pyramid ) :-
विभिन्न जीवो में आयु संरचना की तीनों अवस्थाओं के आनुपातिक संबंध को आयु पिरामिड के द्वारा दर्शाया जाता है।

चौड़े आकारवाले पिरामिड (Broad – based pyramid) में पूर्व प्रजनन काल के जीवों का प्रतिशत सबसे ज्यादा होता है। घंटाकार पिरामिड (Bell –shaped pyramid) में पूर्व प्रजनन काल तथा प्रजनन काल दोनों के जीवों की संख्या लगभग समान रहती है तथा उत्तर प्रजनन काल के जीवों का प्रतिशत सबसे कम रहता है। कलश की संरचनावाले पिरामिड (Urn –shaped pyramid) में पूर्व प्रजनन काल के जीवों का प्रतिशत प्रजनन और उत्तर प्रजनन काल की तुलना में कम रहता है।
3. जन्म – दर (birth rate or natality) :-
किसी जीव की नई व्यष्टियों (new individual) के पैदा होने के दर को जन्म दर कहते हैं।
जन्म दर को निम्नलिखित सूत्रों की सहायता से गणना किया जाता है –
जन्म दर = जन्म की संख्या / निर्धारित समय
4. मृत्यु – दर (death rate or mortality) :-
प्राकृतिक अवस्था में किसी आबादी के जीवों की मृत्यु होने की दर को मृत्यु – दर कहते हैं।
मृत्यु – दर की गणना निम्नलिखित सूत्रों की सहायता से की जाती है –
मृत्यु – दर = मृतकों की संख्या / निर्धारित समय
वाइटल इंडेक्स (Vital index) :-
किसी आबादी में होने वाले सामान्य वृद्धि को जानने के लिए जन्म – दर तथा मृत्यु – दर के आनुपातिक आकलन को निकालना पड़ता है। इसे वाइटल इंडेक्स कहा जाता है।
वाइटल इंडेक्स = (जन्म – दर / मृत्यु – दर ) x 100
5. आबादी का वृद्धि क्रम (growth pattern of population) :-
अनुकूल परिस्थितियों के मिलते रहने से प्रारंभिक अवस्था में आबादी धीरे-धीरे बढ़ती है, फिर तीव्र गति से बढ़कर अधिकतम स्तर पर पहुंच जाती है। इस स्थिति पर पहुंचने के बाद आबादी स्थिर हो जाती है एवं यह स्थिति आबादी की पूर्ण वहन क्षमता (carrying capacity) कहलाती है। अधिकतम वृद्धि की अवस्था में पहुंचने के बाद आगे वृद्धि की संभावना नहीं रहती है। इसके बाद आबादी में कमी आने लगती है।

आबादी का वृद्धि क्रम कई कारकों पर निर्भर करता है। जैसे – वातावरणीय कारक, संक्रामक रोग आदि। इसके कारण आबादी का वृद्धि क्रम कभी धनात्मक (positive ) तो कभी ऋणात्मक (negative) दोनो हो सकते हैं।
6. प्रजनन शक्ति (reproductive potential) :-
प्रजनन शक्ति भी आबादी की विशेषताएं है। जब आबादी के जीवों को समुचित स्थान, भोजन एवं अन्य पारिस्थितिक कारकों (Ecology factors) का सहयोग मिलता है तो प्रत्येक जीव में वंश वृद्धि की दर अधिकतम होती है। इस प्रकार आबादी के जीवन में वंश वृद्धि की आंतरिक शक्ति को जैविक शक्ति या प्रजनन शक्ति कहते हैं।
प्रजनन शक्ति (r) = जन्म-दर (b) — मृत्यु-दर (d)
7. आबादी का घटाव – बढ़ाव (population fluctuation) :-
भोजन एवं स्थान की उपलब्धता, आबादी के जीवों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा आदि अनेक कारणों से किसी जगह की आबादी स्थिर नहीं रहती है। इसमें घटाव या बढ़ाव होता रहता है। आबादी की यह अस्थिरता मौसमी या वार्षिक दोनों तरह की होती है।
समष्टि पारस्परिक क्रियाएँ (Population Interactions) :-
प्राकृतिक आवास में विभिन्न जाति (species) के जीव रहते हैं, इन जीवों के बीच पारस्परिक क्रियाएं होती है। पारस्परिक क्रियाएं एक या दोनों के लिए हितकारी, हानिकारक या उदासीन हो सकते हैं।
हितकारी के लिए धनात्मक (+), हानिकारक के लिए ऋणात्मक (-) तथा उदासीन के लिए शून्य (0) चिन्ह का प्रयोग होता है।
जाति – 1 जाति – 2 पारस्परिक क्रियाएँ
+ + सहोपकारिता (Mutualism)
_ _ स्पर्धा (Competition)
+ _ परभक्षण (Predation)
+ _ परजीविता (Parasitism)
+ 0 सहभोजिता (Commensalism)
_ 0 अंतरजातीय परजीवता (Amensalism)
सहोपकारिता (Mutualism) :-
दो जाति के जीवों के बीच संबंध में दोनों जाति के जीवों को जब लाभ होता है तब उसे सहोपकारिता या सहजीविता कहते हैं।
जैसे — शैवाल और कवक से मिलकर बना लाइकेन। इसमें शैवाल खाद्य पदार्थ का संश्लेषण करता है एवं कवक जल तथा खनिज पदार्थ उपलब्ध कराता है।
स्पर्धा (Competition) :-
इसमे दो जाति के जीवों के बीच सीमित संसाधनों के लिए प्रतियोगिता होती है, जिससे दोनों को नुकसान होता है।
जैसे – दक्षिण अमेरिका के कुछ उथली झीलों (shallow lakes) में आगंतुक (visit) – flamingoes और वहीं के आवाशीय मछलियां अपने सामान्य भोजन, zooplankton के लिए प्रतिस्पर्धा करती है।
गॉसे ‘स्पर्धी अपवर्जन नियम‘ (Gause’s competitive exclution principle) :- इस नियम के अनुसार समान संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाले दो करीबी संबधित प्रजातियां अंतकाल तक साथ – साथ नहीं रह सकते है, क्योंकि प्रतिस्पर्धी घटिया प्रजाति (inferior species) अंततः विलुप्त कर दी जाती है।
परभक्षण (Predation) :-
दो विभिन्न प्रजाति के जीवों के बीच ऐसे संबंध में एक को लाभ तथा दूसरे को हानि होता है। परभक्षण पौधे द्वारा स्थिर किया गया ऊर्जा को अगले पोषी स्तर में स्थानांतरित करने का साधन है।
जैसे — बाघ तथा हिरण में बाघ परभक्षी जबकि हिरण उसका शिकार है।
पौधों के लिए शाकाहारी प्राणी परभक्षी है।
परजीविता (Parasitism) :-
इसमें एक जीव (परजीवी) को लाभ तथा दूसरे जीव (पोषी) को हानि होता है।
अपने जीवन शैली के अनुसार परजीवी में विशेष अनुकूलन विकसित होते हैं। जैसे – अनावश्यक sense organs का अभाव, पोषी से चिपकने के लिए चूषक की उपस्थिति, पाचन तंत्र का लोप होना, उच्च जनन क्षमता आदि।
परजीवीके प्रकार –
- बाह्य परजीवी (Ectoparasites) :- पोषी जीव के शरीर के बाहरी सतह से भोजन प्राप्त करने वाले परजीवी को बाह्य परजीवी कहते हैं। जैसे- मनुष्य पर जू (lice) और कुत्ते पर टिक्स, उच्च पौधों पर कस्कुटा (परजीवी पादप)।
- अंतःपरजीवी (Endoparasites) :- पोषी जीवों के शरीर के अंदर रहने वाले परजीवी को अंतः परजीवी कहते हैं। इसका जीवन चक्र अधिक जटिल होता है। जैसे – मनुष्य के अंदर जीवाणु, गोलकृमि तथा फीताकृमि, घोंघा तथा मछली के अंदर लीवर फ्लूक।
- अंड परजीविता (Brood parasitism) :- ऐसा परजीविता पक्षी में पाई जाती है। परजीवी पक्षी अपने अंडे को पोषी पक्षी के घोषाल में देती है और पोषी उस अंडे को incubate करता है।
विकास के दौरान परजीवी पक्षी के अंडे, size और रंग पोषी के अंडे जैसे हो जाते हैं, जिसके कारण पोषी उसे बाहरी अंडा नहीं समझते हैं।
उदाहरण – कोयल और कौआ में अंड परजीविता।
सहभोजिता (Commensalism) :-
ऐसे संबंध में एक जाति के जीव को लाभ तथा दूसरे को न तो लाभ या न ही हानि होता है।
जैसे — आम के पेड़ पर epiphyte के रूप में ऑर्किड तथा व्हेल के पीठ पर वृद्धि करने वाले barnacles को लाभ होता है जबकि आम तथा व्हेल को कोई फायेदा या नुकसान नहीं होता है।
