शुक्राणुजनन (Spermatogenesis) :-
वृषण के शुक्रजनन नलिका में आदिबीजीकोशिकाओं (primordial germ cells) से शुक्राणुओं के निर्माण प्रक्रिया को शुक्राणुजनन (spermatogenesis) कहते हैं।
इस प्रक्रिया में आदिबीजीकोशिकाएं बार-बार विभाजित होकर द्विगुणित शुक्राणुकोशिकाजन (spermatogonia) बनाती है। ये कोशिकाएं फिर प्राथमिक शुक्राणुकोशिकाओं (Primary spermatocytes) में परिवर्तित हो जाती है।
- प्रत्येक प्राथमिक शुक्राणुकोशिका में 44 + XY गुणसूत्र होते हैं अर्थात यह कोशिका बड़ी तथा द्विगुणित होती है।
- प्राथमिक शुक्राणुकोशिका में जल्द ही अर्धसूत्री विभाजन (meiotic division) होने लगता है, इस विभाजन में कोशिका को प्रोफेज अवस्था की लेप्टोटीन, जायगोटीन, पैकीटीन, डिप्लोटीन तथा डायकिनेसिस उप-अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। प्रोफेज की यह लंबी अवस्था अब मेटाफेज, एनाफेज तथा टेलोफेज से होती हुई अर्धसूत्री विभाजन की क्रिया पूरी करती है। इस विभाजन से बनी सभी पुत्री कोशिकाएं छोटी तथा अगुणित (haploid) होती है जो परवर्ती शुक्राणु कोशिकाएं (secondary spermatocytes) कहलाती है, इन कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या 22 + X आथवा 22 + Y होती है।
- अब सभी परवर्ती शुक्राणु कोशिकाएं द्वितीय अर्धसूत्री विभाजन (meiotic II) में प्रवेश करती है। ऐसे विभाजन से बनने वाले सभी पुत्री कोशिकाओं को पूर्वशुक्राणु (spermatids) कहते हैं, ये कोशिकाएं फिर विभाजित नहीं होते हैं तथा शुक्राणुओं (sperms) में रूपांतरित हो जाते है। पूर्वशुक्राणुओं के शुक्राणुओं में रूपांतरण को शुक्राणु रूपांतरण (spermiogenesis) कहते हैं। गोलाकार पूर्वशुक्राणु लंबा हो जाता है।
- एक वयस्क पुरुष में प्रतिदिन लगभग 10¹² से 10¹³ शुक्राणुओं का निर्माण होता है जो अधिवृष्ण में पहुंचकर परिपक्व होते हैं।
शुक्राणुजनन पर हाॅर्मोन का नियंत्रण (Hormonal control of Spermatogenesis) :-
अंतराली कोशिकाएं अथवा लाइडिग की कोशिकाएं टेस्टोस्टेराॅन हार्मोन स्रावित करती है जिसकी आवश्यकता शुक्राणुजनन में होती है।
- पिट्यूटरी ग्रंथि के अग्र पाली (anterior lobe) से ल्यूटीनाइजिंग हाॅर्मोन (LH) तथा फॉलिकल उत्तेजक हाॅर्मोन (FSH) स्रावित होते हैं। टेस्टोस्टेराॅन, LH तथा FSH हाॅर्मोन के नियंत्रण में शुक्राणुजनन की क्रिया संपन्न होती है।
- FSH तथा टेस्टोस्टेरॉन के नियंत्रण में सर्टोली की कोशिकाएं एंड्रोजेन बाइंडिंग प्रोटीन का स्राव करते है, जो शुक्रजनन नलिकाओं के अंदर टेस्टोस्टेराॅन हार्मोन की सांद्रता को बढ़ा देते है।
- FSH सीधे शुक्राणु कोशिकाजन को प्रभावित कर शुक्राणु बनाता है, इस क्रिया को प्रभावशाली बनाने में LH नामक हाॅर्मोन का सहयोग मिलता है।
शुक्राणु की संरचना (Structure of Sperm) :-
शुक्राणु अत्यंत सूक्ष्म, चलायमान (motile) तथा कोशिका झिल्ली से घिरा हुआ रचना होता है।
प्रत्येक शुक्राणु के निम्नांकित भाग होते हैं –
(a) सिर (Head) :-
- प्रत्येक शुक्राणु के सिर में एक लंबा अगुणित केंद्रक तथा अग्रभाग में टोपी के जैसा एक्रोसोम पाया जाता है। एक्रोसोम के द्वारा sperm lysine नामक प्रोटीन युक्त एंजाइम स्रावित होता है जो निषेचन के समय अंडाणु के कवच को तोड़कर उसके अंदर प्रवेश करने में सहायता करता है।
(b) मध्यभाग (Middle piece) :-
शुक्राणु के मध्यभाग में माइटोकॉन्ड्रिया पाया जाता है जो निषेचन के समय शुक्राणु को गति प्रदान करने के लिए आवश्यक ऊर्जा देती है।
- शुक्राणु के मध्य भाग में आगे की ओर एक सकरा गर्दन या ग्रीवा होता है, जिसमें दो सेंट्रओल स्थित होते हैं।
(c) पूँछ (Tail) :-
कोशिका द्रव्य से बना हुआ यह एक लंबा रचना होता है, किंतु इसके अंतिम भाग में कोशिका द्रव्य का अभाव होता है। पूँछ के मध्य भाग में माइक्रोट्यूब्यूल्स के बने एक्सोनिम होता है जो पूँछ से बाहर निकला रहता है।
- चलायमान शुक्राणु पूँछ की सहायता से तरल माध्यम में गति करते हैं।