रूपांतरीय सिद्धांत (Transforming principle) :-
1928 में, फ्रेडरिक ग्रिफिथ (Frederick Griffith) ने स्ट्रेप्टोकोकस निमोनि (निमोनिया पैदा करने वाला जीवाणु) के दो प्रकारों (S-प्रभेद और R-प्रभेद) के साथ प्रयोग किया। इस प्रयोग से ग्रिफिथ ने रूपांतरीय सिद्धांत प्रतिपादित किया, जिसके अनुसार एक जीवाणु दूसरे जीवाणु से आनुवंशिक पदार्थ प्राप्त करके अपने गुणधर्मों को बदल सकता है.
- जीवाणु S – प्रभेद (विषाक्त) में एक चिकनी सतह होती है और यह घातक होती है जबकि R – प्रभेद (गैर-विषाक्त) में एक खुरदुरी सतह होती है और यह घातक नहीं होती है।
- जब उन्होंने S – प्रभेद (strain) के मृत जीवाणुओं को R – प्रभेद (strain) के जीवित जीवाणुओं के साथ मिलाया, तो R – प्रभेद जीवाणु S – प्रभेद में बदल गए और घातक हो गए। उन्होंने पाया कि S – प्रभेद के मृत जीवाणुओं में एक ऐसा पदार्थ था जो R – प्रभेद जीवाणुओं को S – प्रभेद में बदल सकता है।
जीवाणु के दोनों प्रभेदों को चूहा में स्थानांनतरित करने पर –
S – प्रभेद → चूहे में इंजैक्ट कराया गया → चूहा मर जाता है
R – प्रभेद → चूहे में इंजैक्ट कराया गया → चूहा जीवित रहता है
ग्रिफिथ ने जीवाणु को गर्म करने पर मृत पाया, फिर उन्हें चूहों में प्रवेश कराया –
S – प्रभेद (ताप से मृत) → चूहा में स्थानांतरण → चूहा जीवित रहता है
S – प्रभेद (ताप से मृत) + R – प्रभेद (जीवित) → चूहा मर जाता है

रूपांतरीय सिद्धांत के जीव रासायनिक लक्षण ( Biochemical characteristic of transforming principle) :-
ओसवाल्ड एवरी (Oswald Avery), कोलीन मैकलियोड (Colin MacLeod) तथा मैकलिन मैककार्टी (Maclyn McCarty) ने यह साबित किया कि आनुवंशिक पदार्थ DNA है, न कि प्रोटीन। उन्होंने पाया कि S – जीवाणु का केवल DNA ही R – जीवाणु के रूपांतरण का कारण बनता है, जबकि प्रोटीन या RNA नहीं।
- DNAases एंजाइम्स से पाचन (digestion) के बाद रूपांतरण प्रक्रिया बंद हो जाती है। इससे स्पष्ट है, कि DNA ही रूपांतरण के लिए जिम्मेदार है।
रूपांतरीय सिद्धांत ने आनुवंशिकी के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया और यह साबित किया कि DNA आनुवंशिक पदार्थ है।