मेंडल की वंशागति नियमों के अपवाद निम्नलिखित हैं (Exceptions to Mendel’s Law of Inheritance) :-
- अपूर्ण प्रभाविता (Incomplete dominance)
- सहप्रभाविता (Codominance)
- बहुविकल्पता (Multiple allelism)
- सहलग्नता (Linkage)
अपूर्ण प्रभाविता (Incomplete dominance) :-
जब विपरीत लक्षणों के जोड़े में एक लक्षण दूसरे लक्षण पर प्रभावी न होकर एक दूसरे पर पूर्ण रूप से प्रभावी हो जाता है अर्थात दोनों अपने-अपने लक्षण को आंशिक रूप से प्रकट करते हैं तो इससे अपूर्ण प्रभाविता करते हैं।
जैसे – गुलअब्बास (Mirabilis jalapa) के लाल फूल और सफेद फूल वाले पौधों के साथ क्रॉस होता है तब लाल रंग सफेद पर प्रभावी न होकर दोनो का मिश्रित रंग वाले गुलाबी (Pink) फूल F₁ पीढी में प्राप्त होते है।
पुन: F₁ पीढी मे स्वपरागण (selfing) होने पर F₂ पीढी प्राप्त होता है।
अपूर्ण प्रभाविता में फिनोटाइप तथा जीनोटाइप अनुपात एक समान (1:2:1) होता हैं।
सहप्रभाविता (Codominance) :-
जब किसी जीव के दो जनकों में एलील जोड़े के बीच क्रॉस होता है तब F₁ पीढी में उनके एक लक्षण दूसरे लक्षण पर प्रभावी न होकर दोनों लक्षण एक साथ पूर्ण रूप से संतान में प्रकट हो जाते हैं तब उसे सहप्रभाविता कहते है, जो मेंडल की वंशागति नियमों के अपवाद है।
जैसे – जब लाल त्वचा वाले मवेशी का संकरण सफेद त्वचा वाले मवेशी से होता है तब F₁ पीढी के सभी मवेशी चितकबरा (Roan) प्राप्त होते हैं जिसके त्वचा पर लाल तथा सफेद दोनों रंग एक साथ प्राप्त होते हैं।
सहप्रभाविता में फीनोटाइप अनुपात तथा जीनोटाइप अनुपात एक समान (1:2:1) होता है।
बहुविकल्पता (Multiple allelism) :-
जब किसी एक लक्षण के लिए 2 से अधिक वैकल्पिक ऐलील जिम्मेवार हो तो ऐसे ऐलील को बहुविकल्पी एलील तथा इस प्रकार की घटना को बहूविकल्पत्ता कहते हैं।
जैसे – खरगोश की त्वचा के रंग के लिए 4 अथवा अधिक ऐलील जिम्मेवार होते हैं।
- मानव रुधिर वर्ग (Blood group) के निर्धारण के लिए तीन प्रकार के ऐलील जिम्मेवार होते हैं।
बहुविकल्पता मेंडल की वंशागति नियमों के अपवाद है क्योंकि इनके नियम में जीवो के 1 लक्षण का निर्धारण केवल 1 जोड़ा ऐलील द्वारा होता है।
मानव रुधिर वर्ग (Human blood group) :-
कार्ल लैंडस्टेनर नामक वैज्ञानिक ने सर्वप्रथम यह बताया कि मानव RBC की कोशिका झिल्ली पर दो प्रकार के एंटीजेंस पाए जाते हैं जबकि इनके अतिरिक्त रक्त प्लाज्मा में दो प्रकार के एंटीबॉडी पाए जाते हैं। इन्हीं एंटीजन तथा एंटीबॉडी के कारण मानव ब्लड ग्रुप निम्नांकित चार प्रकार के होते हैं –
- ब्लड ग्रुप AB को सर्व प्राप्तकर्ता (Universal recipient) कहते हैं क्योंकि इसमें दोनों एंटीबॉडीज अनुपस्थित होते हैं जिसके कारण ऐसे व्यक्ति सभी प्रकार के ब्लड ग्रुप वाले ब्लड प्राप्त कर सकते हैं। किंतु इसमें एंटीजन A तथा एंटीजन B उपस्थित होने के कारण ब्लड ग्रुप A, B तथा O को अपना ब्लड नहीं दे सकते हैं क्योंकि यह ब्लड शरीर में थक्का बना देगा।
- ब्लड ग्रुप O को सर्वदाता (Universal donor) कहते हैं क्योंकि इसमें एंटीजन अनुपस्थित रहते हैं।
- ब्लड ग्रुप A वाले केवल A को तथा B वाले केवल B को अपना ब्लड डोनेट कर सकते हैं।
- किसी एक मनुष्य में तीनों ऐलील उपस्थित न हो कर दो ही उपस्थित होते हैं जिससे ब्लड ग्रुप का निर्धारण होता है।
सहलग्नता (Linkage) :-
किसी एक ही गुणसूत्र पर उपस्थित वे जीन अथवा ऐलील जो अर्धसूत्री कोशिका विभाजन के समय एक दूसरे से अलग हुए बिना उसी स्थिति में पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होते रहते हैं, उसे सहलग्न जीन कहते हैं तथा ऐसी घटना को सहलग्नता कहते हैं।
यह मेंडल की वंशागति नियमों के अपवाद है। सर्वप्रथम सहलग्नता का खोज R. C. Punett, E. R. Squders तथा William Bateson के द्वारा किया गया था।
ड्रोसोफिला में सहलग्नता (Linkage in Drosophila) :-
T H Morgan नामक वैज्ञानिक ने सहलग्नता की घटना का अध्ययन फल पर बैठने वाले मक्खि ड्रोसॉफिला पर किया क्योंकि प्रयोगशाला में इसका उत्पादन आसानी से होता है। इनमे नर तथा मादा की पहचान आसानी से हो जाते हैं आनुवंशिकी विविधता भी अनेक होते हैं।
Morgan ने जब सफेद आंख – पीला शरीर वाले मादा ड्रोसॉफिला का द्विसंकर क्रॉस लाल आंख – भुरा शरीर वाले नर ड्रोसॉफिला से कराया तो F1 के बाद F2 पीढी में इनके संतानों का फिनोटाइप अनुपात 9:3:3:1 प्राप्त नहीं हुआ जो मेंडल की वंशागति नियमों के अपवाद है
Morgan ने सफेद आँख वाला मादा तथा लाल आँख वाला नर Drosophila के बिच एकसंकर क्राॅस भी कराया जिसमे फिनोटाइप अनुपात 3:1 न होकर कुछ अलग प्राप्त हुआ।
लिंग सहलग्न वंशागति (Sex-linked Inheritance) :-
जब लक्षणों के जीन लिंग गुणसूत्र पर पाए जाते हैं तो उनकी वंशागति को लिंग सहलग्न वंशागति कहते हैं।
जबकि मेंडेलियन वंशागति में लक्षणों के जीन अलिंग गुणसूत्र (Autosome) में ही पाए जाते हैं।
लिंग सहलग्न जीन तीन प्रकार के होते हैं –
1. X – सहलग्न जीन :-
जब सहलग्न जीन X- गुणसूत्र पर पाए जाते हैं तो उसे X- सहलग्न जीन कहते हैं, इसके वंशागति को x- सहलग्न वंशागति कहते हैं । जैसे – हीमोफीलिया, वर्णांधता।
2. Y – सहलग्न जीन :-
जब सहलग्न जीन Y- गुणसूत्र पर पाए जाते हैं तो उसे Y- सहलग्न जीन कहते हैं, इसके वंशागति को Y- सहलग्न वंशागति कहते हैं। जैसे – कानो मे बाल की बहुलता, स्केली त्वचा का होना।
3. अपूर्ण लिंग सहलग्न जीन :-
कुछ जीन X तथा Y दोनों लिंग गुणसूत्र पर पाए जाते हैं तब उसे अपूर्ण लिंग सहलग्न जीन कहते हैं।