अनुकूलन (Adaptation) :-
जीवों का वैसा विशेष गुण जो संरचना तथा उन्हें कार्य करने की विशेषताओं के द्वारा विशेष वातावरण में रहने की क्षमता प्रदान करता है, उसे अनुकूलन कहते हैं।
जैसे – 1. ऊंट अपनी संरचना के कारण एक गाय की अपेक्षा मरुभूमि में जीवन यापन के लिए अच्छी तरह अनुकूलित होते हैं।
2. कैक्टस एक गुलाब की अपेक्षा शुष्क वातावरण में रहने के लिए अनुकूलित होते हैं।
अनुकूलन के प्रकार (types of adaptation ) :-
दो प्रकार के होते हैं –
1. अस्थाई अनुकूलन :-
ऐसे अनुकूलन कम समय के लिए होते है तथा इनमे आनुवंशिक परिवर्तन नहीं होता है।
जैसे – जब हमारी आंखों के सामने तेज प्रकाश आता हैं तब आंखों की पुतलियां संकुचित हो जाती है ताकि तेज प्रकाश से आंख के अंदर की संरचना प्रभावित न हों।
2. स्थाई अनुकूलन :-
ऐसे एडेप्टेशन काफी लंबे समय के लिए रहते है तथा आनुवंशिक परिवर्तन के रूप में स्थिर हो जाते हैं यानी ये एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में अग्रसारित होते रहते हैं।
जैसे – पक्षियों में उड़ने के लिए अग्रपादों (forelimbs ) का पंखों में परिवर्तित होना स्थाई एडेप्टेशन है।
पेड़ के पतियों को खाने के लिए जिराफ के लंबे गर्दन का होना।
मरुस्थलीय पौधों में पारिस्थितिक अनुकूलन (Ecological Adaptation in xerophytic plants) :-
मरुस्थलीय एवं शुष्क स्थानों में पाए जाने वाले पौधों में निम्नलिखित एडेप्टेशन पाए जाते हैं –
- इनकी जड़ें बहुत लंबी, मोटी एवं मिट्टी के नीचे अधिक गहराई तक जाती है।
- इनके तने जल – संचय करने के लिए मांसल और मोटे होते हैं।
- वाष्पोत्सर्जन के द्वारा जल की क्षति को रोकने के लिए तना सामान्यतः क्यूटिकलयुक्त तथा घने रोम से भरा होता है।
4. पतियां छोटी, शल्कपत्र या कांटों (spines) के रूप में परिवर्तित हो जाती है जिससे कम से कम जल की क्षति होती है।
5. रंध्र (stomata) स्टोमेटल कैविटी में धसे रहते हैं।
जैसे – नागफनी (Opuntia), यूफोर्बिया (Euphorbia), एकेसिया (Acacia) आदि जिरोफाइट पौधे हैं।
Fig :- Adaptation in Opuntia.