
पुनर्योगज DNA प्रौद्योगिकी (Recombinant DNA technology) :-
वांछित पौधे के DNA को विभिन्न विधियों द्वारा निकालकर उसे प्रतिबंधन एंजाइम की मदद से काटा जाता है फिर संवाहक (vector) DNA के साथ लाइगेज एंजाइम की मदद से जोड़ कर रिकॉम्बिनेंट DNA प्राप्त किया जाता है। प्राप्त करने की ऐसी तकनीक को पुनर्योगज DNA प्रौद्योगिकी या जीन क्लोनिंग कहते है।
- पुनर्योगज DNA प्रौद्योगिकी का खोज स्टेनले कोहेन तथा हरबर्ट बॉयर ने सन 1972 में किया था।

पुनर्योगज DNA प्रौद्योगिकी /जीन क्लोनिंग के प्रक्रम (Process of recombinant DNA technology) :-
पुनर्योगज DNA प्रौद्यौगिकी के निम्नलिखित प्रक्रम होते हैं –
(1) DNA का पृथक्करण (Isolation of DNA) :-
पुनर्योगज DNA प्रौद्योगिकी के अंर्तगत DNA को शुद्ध रूप में प्राप्त करने के लिए वृहद अणुओं, जैसे – प्रोटीन, बहुशर्करा, लिपिड तथा RNA को अलग किया जाता है। जिसके लिए विभिन्न प्रकार के एंजाइम्स का उपयोग किया जाता है।
- जीवाणु कोशिका, पादप या जंतु कोशिका को एंजाइम द्वारा उपचारित (treat) किया जाता है। जीवाणु कोशिका को एंजाइम लाइसोजाइम (lysozyme) से, पादप कोशिका को एंजाइम सेलुलेज (cellulase) से तथा कवक कोशिका को एंजाइम chitinase द्वारा उपचारित किया जाता है।
- पादप ऊतकों से DNA को अलग करने के लिए हरी पत्ती के एक छोटे टुकड़े को तरल नाइट्रोजन में ग्राइंड किया जाता है। गर्म CTAB बफर (buffer) को पीसी हुई पाती से मिलाया जाता है। शंकु आकार ट्यूब (conical tube) में इसे मिलाकर 30 से 60 मिनट तक 100 डिग्री सेल्सियस पर रखा जाता है। उसके बाद उसमें SEVAG (क्लोरोफॉर्म, आइसोएमाइल एल्कोहल का मिश्रण) मिलाया जाता है। इसे अपकेंद्रित (centrifuge) कर इससे गंदगी को अलग कर लिया जाता है। अंत में एल्कोहल (alcohol) मिलाने से शोधित DNA अवक्षेपित (precipitate) हो जाता है। इस निलंबन में DNA को महीन धागों के समूह के रूप में देखा जा सकता है।
(2) DNA को विशिष्ट स्थलों पर काटना (cutting of DNA at specific locations) :-
शोधित डीएनए को विशिष्ट स्थलों पर काटने के लिए प्रतिबंधन एंजाइम (restriction enzyme) का प्रयोग किया जाता है। प्रतिबंधन एंजाइम के कार्य की प्रगति को देखने के लिए ऐगारोज जेल विद्युत कण-संचालन (Gel electrophoresis) विधि का इस्तेमाल किया जाता है। चुकी DNA एक ऋणात्मक आवेशित अणु होता है इस कारण यह धनात्मक इलेक्ट्रोड की ओर बढ़ता है। घनात्मक इलेक्ट्रोड एनोड कहलाता है। यह प्रक्रम संवाहक DNA के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।




(3) DNA खंड का संवाहक से बंधन (ligation of fragment DNA into vector) :-
प्रतिबंधन एंजाइम द्वारा कटे हुए DNA तथा कटे हुए संवाहक DNA को ligase एंजाइम द्वारा जोड़ा जाता है। इसके परिणामस्वरूप पुनर्योगज (Recombinant) DNA का निर्माण होता है।
(4) पोलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया (Polymerase Chain Reaction, PCR) :-
PCR विधि द्वारा जीन (gene) के कई प्रतिरूपों (copies) का संश्लेषण किया जाता है। इस कार्य के लिए एक विशेष उपकरण का उपयोग किया जाता है जिसे Thermal cycler कहा जाता है।




PCR चक्र में मुख्यतः तीन चरण होते हैं —
(a) निष्क्रीयकरण (denaturation) :-
इस चरण में DNA को 92 डिग्री सेल्सियस पर 1 मिनट तक थर्मल साइक्लर में गर्म किया जाता है जिससे उसके दोनों स्ट्रैंड अलग हो जाते हैं।
(b) तपानुशीलन (annealing) :-
इस चरण में अभिक्रिया मिश्रण (reaction mixture) के तापक्रम को घटाया जाता है। यह सामान्यतः 48 डिग्री सेल्सियस रहता है इस तापक्रम पर भी 1 मिनट के लिए रखा जाता है।
(c) विस्तार (extension) :-
तपानुशीलन के बाद विस्तार किया जाता है जो 72 सेल्सियस पर 1 मिनट के लिए होता है।
PCR चक्र को 34 – 37 बार दोहराया जाता है इस प्रकरण द्वारा DNA खंड को एक अरब गुना तक प्रवर्धित (amplified) किया जा सकता है।
(5) पुनर्योगज DNA का निवेशन (Insertion of recombinant DNA) :-
बंधे हुए DNA (ligated) को जीवाणु कोशिका में प्रवेश कराया जाता है जहां ट्रांसफॉरमेशन विधि द्वारा जीवाणु DNA को धारण कर लेता है। इसके लिए सामान्यतः एशरीशिया कोलाई (E. coli) जीवाणु का इस्तेमाल किया जाता है। जीवाणु को कैल्शियम क्लोराइड के ठंडे, कम सांद्रतावाले (dilute) घोल में रखा जाता है जिससे जीवाणु की विजातीय DNA की ग्रहण क्षमता बढ़ जाती है।
जैसे यदि पुनर्योगज DNA जिसमें प्रतिजैविक (antibiotic) एंपीसिलीन के प्रति प्रतिरोधी जीन स्थित हो और इसे ई कोलाई कोशिकाओं में स्थानांतरित कर दिया जाए तब परपोषी कोशिकाएं (host cells)प्रतिरोधी कोशिकाओं में रूपांतरित हो जाती है। जब रूपांतरित कोशिकाओं को एंपीसिलीन युक्त ऐगार प्लेट पर फैलाया जाता है तब वही कोशिकाएं विकसित हो पाती है जिनमें एंपीसिलीन प्रतिरोधी जीन होता है। ऐसे जीन को वरण-योग्य चिन्हक कहा जाता है।
बाहरी जीन उत्पाद को प्राप्त करना (obtaining the foreign gene product) :-
सभी पुनर्योगज तकनीक का मुख्य उद्देश्य होता है वांछित उत्पाद प्राप्त करना। इसके लिए पुनर्योगज से DNA को अभिव्यक्त (express) करने की आवश्यकता पड़ती है। बहरी जीन उपयुक्त परिस्थितियों में अभिव्यक्त होते हैं। जब हम विजातीय DNA खंड को क्लोनिंग संवाहक से जोड़कर जीवाणु, पौधा या जंतु कोशिका में स्थानांतरित करते हैं तब विजातीय DNA इन कोशिकाओं में गुनित होने लगता है।
- पुनर्योगज DNA प्रौद्योगिकी (recombinant DNA technology) का प्रयोग कर जब हम कोई प्रोटीन प्राप्त करते हैं तब उसे पुनर्योगज प्रोटीन (recombinant protein) कहते हैं।
जैसे – पुनर्योगज DNA प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर इन्सुलिन का उत्पादन निम्नलिखित प्रक्रम द्वारा कर सकते हैं।



