
जैव प्रौद्योगिकी (Biotechnology) :-
जैव प्रौद्योगिकी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें औद्योगिक प्रक्रमों, सजीवों अथवा उनसे प्राप्त पदार्थों का उपयोग किया जाता है। दैनिक जीवन में काम आनेवाली अनेक महत्वपूर्ण चीजें इसी प्रकार के उत्पाद है, जैसे वृद्धि हार्मोन (growth hormone), इंटरफेरॉन, इंसुलिन, टीका (vaccine), एंजाइम्स, एंटीबायोटिक्स औषधियां, कार्बनिक अम्ल आदि।
- जैव प्रौद्योगिकी का मुख्य उद्देश्य ऐसे उत्पादों, प्रक्रियाओं और प्रौद्योगिकी का विकास करना है जिनका स्वास्थ्य, कृषि तथा उद्योगों में व्यापक प्रयोग किया जा सके। जैव प्रौद्योगिकी के विकास में आनुवंशिक अभियांत्रिकी (genetic engineering) सूक्ष्मजीवविज्ञान (microbiology), उत्तक संवर्धन (tissue culture) एवं आण्विक जीवविज्ञान (molecular biology) का बहुत बड़ा योगदान है।
जैव प्रौद्योगिकी के सिद्धांत (principles of biotechnology) :-
आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के विकास में दो प्रमुख तकनीकों का योगदान है –(1) रासायनिक अभियांत्रिकी तथा (2) आनुवंशिक अभियांत्रिकी।
रासायनिक अभियांत्रिकी (Chemical engineering) :-
ऐसे प्रक्रामों में रोगाणुरहित (सूक्ष्मजीव संदूसन रहित) वातावरण बनाकर केवल वांछित सूक्ष्मजीवों को यूकैरियोटिक कोशिकाओं में वृद्धिकर अधिक मात्रा में जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों का निर्माण किया जाता है, जैसे टिके (vaccines), एंजाइम्स तथा एंटीबायोटिक्स का उत्पादन।
- 1928 में एलेग्जेंडर फ्लेमिंग (Alexander Fleming) ने पेनिसिलिन (penicillin) नामक एंटीबायोटिक की खोज की। इस प्रथम एंटीबायोटिक की खोज के पश्चात 1950 से कई एंटीबायोटिक की खोज हुई और उनका उत्पादन शुरू हुआ।
आनुवंशिक अभियांत्रिकी (Genetic engineering) :-
आनुवंशिक अभियांत्रिकी वह जैव प्रौद्योगिकी है जिसके द्वारा किसी भी जीव से DNA निकालकर किसी अन्य जीव के DNA या जीन्स के साथ मिलाया जाता है। जेनेटिक इंजीनियरिंग में DNA को छोटे-छोटे टुकड़ों में विभक्त किया जाता है और इन टुकड़ों को किसी pladmid के DNA से जोड़ा जाता है। यह plasmid जीवाणु के अंदर विद्यमान होता है और स्वतंत्र रूप से विभक्त होकर अपनी संख्या को बढ़ाता है।
- जेनेटिक इंजीनियरिंग की शुरुआत 1973 में हुई थी जब स्टेनले कोहेन तथा हरबर्ट बॉयर ने Escherichia coli (E. coli) के plasmid में बाहरी DNA को स्थानांतरित किया था।
- 1953 में वाटसन और क्रिक ने DNA की सरंचना का पता लगाया था जिसने जेनेटिक इंजीनियरिंग की नींव डाली थी। 1971 में राइजोबियम से nitrogen fixing (nif) gene को अन्य जीवाणु में स्थानांतरित किया गया था। 1973 में पहला जेनेटिक इंजीनियरिंग का प्रयोग सफलतापूर्वक किया गया।
ट्रांसजेनिक जीव या आनुवंशिकताः संशोधित जीव (genetically modified organism, GMO) :-
वह जीव जिसमें बाहरी जीन प्रत्यारोपित किया जाता है उसे ट्रांसजेनिक या आनुवंशिकतः संशोधित जीव कहा जाता है। जैसे इंसुलिन जीन को जीवाणु E. coli में स्थानांतरित कर जैव प्रौद्योगिकी विधि से इंसुलिन का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है।
आनुवंशिक अभियांत्रिकी के यंत्र तथा तकनीक (Tools and techniques of genetic engineering) :-
(1) ऊतक या कोशिका जिसमें वांछित DNA विद्यमान होता है।
(2) प्रतिबंधन एंजाइम (restriction enzyme) को मॉलिक्यूलर सीजर्स भी कहा जाता है। इस प्रकार के एंजाइम DNA को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट देता है।
(3) लाइगेज (ligase) एंजाइम जो DNA के कटे हुए टुकड़ों को plasmid में जोड़ता है।
(4) क्लोनिंग संवाहक (cloning vectors) जिसके माध्यम से कटे हुए DNA को स्थानांतरित किया जाता है।
प्रतिबंधन एंजाइम्स (Restriction enzymes) :-
DNA को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटने वाले एंजाइम्स को प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज एंजाइम्स (restriction endonuclease enzymes) कहते है।
- सन 1963 में सर्वप्रथम बैक्टीरिया E. coli से प्रतिबंधन एंजाइम का खोज किया गया था। वर्तमान में लगभग 900 प्रतिबंधन एंजाइम्स के खोज किए जा चुके हैं। जैव प्रौद्योगिकी में इन एंजाइम्स की महत्वपूर्ण भूमिका हैं।
- प्रथम प्रतिबंधन एंजाइम Hind II है। यह एंजाइम DNA अणु को उस विशेष बिंदु पर काटते हैं जहां पर छः क्षारक युग्मों (six base pairs) का एक विशेष अनुक्रम होता है। इस विशेष क्षारक अनुक्रम को पहचान अनुक्रम (recognition sequence) कहते है।
प्रतिबंधन एंजाइम्स को दो वर्गों में बांटते हैं –
(1) एक्जोन्यूक्लिएज (exonuclease) :- यह DNA के सिरे (ends) से न्यूक्लियोटाइड को अलग करते हैं।
(2) एंडोन्यूक्लिएज (endonuclease) :- यह डीएनए को भीतर विशिष्ट स्थलों पर काटते हैं।

प्रतिबंधन एंजाइम्स के उदाहरण, स्रोत, पहचान एवं विवरण (examples of restriction enzymes, source, recognition and cleavage site) :-




DNA palindromes :-
ये DNA क्षारक युग्मों (base pairs) का एक ऐसा अनुक्रम है जो पढ़ने के अभिविन्यास (orientation) को समान रखने पर दोनो लड़ियों में एक जैसे पढ़ा जाता है।
जैसे –
5′ – GAATCC – 3′
3′ – GAATCC – 5′
उपर्युक्त अनुक्रमों को 5′ से 3′ की दिशा में पढ़ने पर दोनो लड़ियों को एक जैसा पढ़ा जायेगा। 3′ से 5′ की ओर पढ़ने पर भी एक जैसे ही पढ़ा जायेगा।
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प्रतिबंधन एंजाइम का नामकरण (nomenclature of restriction enzyme) :-
प्रतिबंधन एंजाइम का नामकरण एंजाइम स्रोत वाले जीवों के वंश (Genus) तथा जाति (species) के आधार पर किया जाता है। जैसे प्रतिबन्धन एंजाइम Hind lll का नामकरण –




क्लोनिंग संवाहक (Cloning vectors) :-
कटे हुए DNA को जिसके माध्यम से पोषी (host) कोशिका में स्थानांतरित किया जाता है उसे क्लोनिंग संवाहक कहते है।
- क्लोनिंग संवाहक के रूप में plasmid (bacterial DNA), जीवाणुभोजी (bacteriophage) वायरस, पौधे एवं जंतुओं के वायरस तथा बैक्टीरिया, यीस्ट, स्तनधारियों आदि के कृत्रिम क्रोमोजोम्स का उपयोग किया जाता है।
क्लोनिंग संवाहक प्राकृतिक तथा कृत्रिम दोनो होते है —
Ti plasmid एक प्राकृतिक क्लोनिंग संवाहक है जो एक जीवाणु एग्रोबैक्टेरियम ट्यूमिफेसिएंस द्वारा पौधों की जड़ों में बनाए गए ट्यूमर कोशिकाओं में पाया जाता है। यह एक प्राकृतिक जीन वाहक है जिसमें जेनेटिक सूचना के ट्रांसफर तथा एक्सप्रेशन करने की क्षमता होती है।
bacterial plasmid pBR322 एक कृत्रिम plasmid है जिसमें प्राकृतिक रूप में पाए जाने वाले plasmid के विभिन्न भागों को प्रयुक्त किया गया है।
क्लोनिंग संवाहक की विशेषताएं :-
(1) प्रतिकरण की उत्पति (Origin of replication, ori) :-
यह एक अनुक्रम (sequence) है जहां से प्रतिकरण (replication) की शुरुआत होती है। DNA का कोई खंड जब इस अनुक्रम से जुड़ जाता है तब वह पोषी (host) कोशिकाओं के अंदर अपनी कई प्रतिरूप (copy) बना लेते हैं। DNA के प्रतिरूपों की संख्या के नियंत्रण के लिए भी यह अनुक्रम जिम्मेदार होता है।
(2) वरन योग्य चिन्हक (selectable markers) :-
संवाहक को ‘ori’ के साथ-साथ वरन योग्य चिन्हक की भी आवश्यकता होती है जो अरुपांतरणों (nontransformants) की पहचान कर सके और उन्हें समाप्त करने में सहायक सिद्ध हो सके।
रूपांतरण (transformation) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा DNA के एक खंड को पोषी (host) जीवाणु में प्रवेश कराया जाता है। सामान्यतः tetracycline, ampicillin, chloramphenicol आदि प्रतिजैविकों (antibiotics) के प्रति प्रतिरोध (resistance) कोडित (encoding) करनेवाले जीन (gene) E. coli जीवाणु के लिए उपयोगी वरन योग्य चिन्हक (selectable markers) माने जाते हैं।
(3) क्लोनिंग स्थल (cloning sites) :-
विजातीय DNA को जोड़ने के लिए उपयोग किए जा रहे प्रतिबंधन एंजाइम के लिए संवाहक में एक या अधिक पहचान स्थल होते हैं जिन्हें क्लोनिंग स्थल कहते है।




उपर्युक्त चित्र में प्रतिबंधन एंजाइम्स जैसे EcoRl, BamHl, Sal l, EcoRv, Pst l, Hind lll, Nde l के लिए प्रतिबंधन स्थल होते हैं। इसके अतिरिक्त इनमे ori तथा प्रतिजैविक प्रतिरोधी जीन (ampR एवं tetR) होते हैं।