
जैविक उर्वरक के रूप में सूक्ष्मजीव (Microbes as biofertilizers) :-
किसी मृदा (soil) में यदि लगातार फसल उगाई जाती है और बाहर से पोषक तत्व नही मिलाई जाती है तब मृदा की उर्वरा-शक्ति कम हो जाती है। मृदा की उर्वरा-शक्ति में वृद्धि हेतु जैविक उर्वरक के रूप में सूक्ष्मजीव का उपयोग करना अधिक लाभकारी होता है। इससे कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता है।
जैविक उर्वरक का निर्माण विभिन्न प्रकार के जीवों, जैसे नील-हरित शैवाल या सायनोबैक्टीरिया, जीवाणु एवं कवक से होता है।
- नील-हरित शैवाल जैसे नॉस्टोक (Nostoc), ऐनाबीना (Anabaena) आदि वायुमंडल से नाइट्रोजन गैस को ग्रहण कर उसे नाइट्रोजन यौगिकों में परिवर्तित कर देती है। ये जल में पाए जाने वाले स्वपोषी सूक्ष्मजीव होते हैं। इनमें हेट्रोसिस्ट (heterocyst) नामक विशेष कोशिका पाई जाती है जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण (nitrogen fixation) में मुख्य भूमिका निभाते हैं। सायनोबैक्टीरिया 20 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से फिक्सिंग करते हैं। ऐसे नील-हरित शैवाल या सायनोबैक्टेरिया का शुष्क स्पोर्स बाजार में उपलब्ध किया गया है जो धान के खेतों में उपयोग किया जाता है।

- जैविक उर्वरक के रूप में कार्य करने वाले जीवाणु दो प्रकार के हो सकते हैं – सहजीवी जीवाणु (symbiotic bacteria) एवं मुक्तजीवी जीवाणु (freeliving bacteria)। राइजोबियम (Rhizobium) एक सहजीवी जीवाणु है जो मटर कुल के पौधों की जड़ों में ग्रंथियां (nodules) बनाते हैं और वायुमंडल से नाइट्रोजन गैस ग्रहण कर इसे नाइट्रोजन के योगिकों के रूप में परिवर्तित करते हैं। इससे मृदा की पोषक शक्ति में वृद्धि होती है।




- जैविक उर्वरक के रूप में सूक्ष्मजीव (मृदा में पाए जाने वाले मुक्तजीवी बैक्टीरिया), जैसे एजोटोबैक्टर (Azotobacter), एजोस्पैरिलम (Azospirillum) भी वायुमंडल के नाइट्रोजन को फिक्सिंग करते हैं।
- उच्च कुल के पौधों की जड़ों एवं कवक (fungi) के बीच बनने वाले सहजीवी संबंध को माइकोराइजा (mycorrhiza) कहते हैं। इस सहजीवी संबंध में कवक पौधों को पोषक तत्व प्रदान करते हैं। कवक के तंतु मृदा से फास्फोरस तथा अन्य पोषकों को ग्रहण कर पौधे को उपलब्ध कराते हैं। इससे पौधे की वृद्धि और विकास अच्छी होती है। इसके अतिरिक्त पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होती है। ऐसे सहजीवी के कारण पौधे लवणता एवं सूखे का सफलतापूर्वक सहन कर सकते हैं।
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