जीन अभिव्यक्ति का नियमन (Regulation of Gene Expression) :-
यह ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोशिकाएं यह तय करती हैं कि कौन से जीन को कब और कितना सक्रिय करना है। इस नियमन के फलस्वरुप पॉलिपेप्टाइड चैन या प्रोटीन का निर्माण होता है, जिसे कई स्तरों पर नियमित किया जाता है।
सुकेंद्रकी या यूकैरियोटिक में जीन अभिव्यक्ति का नियमन (Regulation of gene expression in eukaryotic) :-
यूकैरियोटिक में जीन अभिव्यक्ति का नियमन निम्नांकित स्तरों पर होता है
- अनुलेखन स्तर (Transcription level) :- यह जीन को सक्रिय करने या निष्क्रिय करने के लिए जीन के डीएनए से आरएनए के निर्माण की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।
- संसाधन स्तर (Processing level) :- संबंधन का नियमन
- mRNA का केंद्रक से कोशिकाद्रव्य में अभिगमन (Transport)
- स्थानांतरण स्तर (Translation level) :- यह RNA से प्रोटीन के निर्माण की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।
जीन, कोशिका में अभिव्यक्त होकर एक विशेष या निश्चित कार्य को संपन्न करता है। जैसे – एक भ्रूण का व्यस्क जीव में विकास तथा विभेदन भी जीन के विभिन्न समूहों के अभिव्यक्ति से होता है।
जैसे – E. coli द्वारा Beta – glactosidase एंजाइम संश्लेषित होता है। यह एंजाइम disaccharide lactose के हाइड्रोलाइसिस को उत्प्रेरित (catalyse) कर glucose तथा galactose का निर्माण करता है, जिन्हे जीवाणु ऊर्जा के स्रोत के रूप में उपयोग करते हैं।
प्रोकैरियोटिक में जीन अभिव्यक्ति का नियमन ( Regulation of gene expression in prokaryotic) :-
प्रोकैरियोट्स में जीन अभिव्यक्ति का नियमन मुख्य रूप से प्रतिलेखन (transcription) के स्तर पर होता है।
- इसमें ऑपेरॉन (operons) नामक इकाइयों का उपयोग किया जाता है।
- प्रोकैरियोट्स में जीन अभिव्यक्ति को सक्रिय करने या दबाने के लिए सक्रियक (activators) और रिप्रेसर (repressors) का उपयोग किया जाता है।
जैसे – लैक ऑपेरॉन (lac operon) लैक्टोज की उपस्थिति में सक्रिय होता है और लैक्टोज की अनुपस्थिति में दबा दिया जाता है।
ऑपेरॉन :-
ऑपेरॉन एक प्रमोटर, एक ऑपरेटर तथा एक या अधिक जीन का एक समूह होता है जो एक साथ काम करते हैं।
- प्रमोटर वह जगह है जहाँ आरएनए पॉलीमरेज़ (RNA polymerase) जुड़ता है और प्रतिलेखन (transcription) शुरू करता है।
- ऑपरेटर एक ऐसा क्षेत्र है जो रिप्रेसर (repressor) नामक प्रोटीन से जुड़ता है और प्रतिलेखन को रोक सकता है।
Operon model were first proposed by F. Jacob and J. Monod in 1961
लैक ऑपेरॉन (lac operon) :-
लैक ऑपेरॉन ई. कोलाई जैसे बैक्टीरिया में जीनों का एक समूह है, जो लैक्टोज के चयापचय (metabolism) को नियंत्रित करता है।
- यह एक प्रेरित ऑपेरॉन है, जो आमतौर पर निष्क्रिय रहता है, लेकिन लैक्टोज मौजूद होने पर इसे सक्रिय किया जा सकता है। यह सक्रिय तब होता है जब लैक्टोज एक रिप्रेसर प्रोटीन से बंधता है ।
- लैक ऑपेरॉन में तीन संरचनात्मक जीन (लैक Z, लैक Y तथा लैक A) होते हैं जो लैक्टोज के टूटने में प्रमोटर और ऑपरेटर जैसे नियामक तत्वों (Regulatory elements) के लिए कोड करते हैं।

संरचनात्मक जीन :-
lac Z : – यह जीन β-गैलेक्टोसिडेस (β-galactosidase) नामक एंजाइम को कोड करता है, जो लैक्टोज को ग्लूकोज और गैलेक्टोज में तोड़ता है।
lac Y : – यह जीन β-गैलेक्टोसाइड परमीज (β-galactoside permease) नामक एंजाइम को कोड करता है, जो लैक्टोज को कोशिका के अंदर ले जाने में मदद करता है।
lac A : – यह जीन β-गैलेक्टोसाइड ट्रांसएसिटाइलेज (β-galactoside transacetylase) नामक एंजाइम को कोड करता है, जिसका कार्य अभी तक पूरी तरह से समझा नहीं गया है।
लैक ओपेरॉन का नियंत्रण :-
लैक ओपेरॉन का नियंत्रण दो कारकों पर निर्भर करता है –
1. लैक्टोज की उपस्थिति : – जब लैक्टोज मौजूद होता है, तो यह दमनकारी प्रोटीन से जुड़ जाता है और इसे ऑपरेटर से अलग कर देता है। इससे आरएनए पॉलीमरेज़ संरचनात्मक जीनों के प्रतिलेखन (transcription) को शुरू कर सकता है
2. ग्लूकोज की अनुपस्थिति :- जब ग्लूकोज कम होता है, तो एक अन्य नियामक प्रोटीन, कैटाबोलाइट एक्टिवेटर प्रोटीन (CAP) , प्रमोटर से जुड़ जाता है और संरचनात्मक जीनों के प्रतिलेखन को बढ़ाता है।